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३-नई रोमन-लिपि के प्रचार का प्रयत्न ।

अभी तक भारत की धर्मान्धता, अधार्मिकता और मूर्ति- पूजा ही की तरफ़ देश और विदेश के कुछ अन्यधर्मावलम्बियों का अधिक ध्यान था;, अभी तक वे हिन्दुओं के धर्म और सदाचार ही पर आघात करके अपने धर्म की श्रेष्ठता को घोषणा करते थे; पर अब उन्होंने अपना क़दम और भी आगे बढ़ाया है। अब वे हमारी लिपि के भी दोष दिखा कर, उसके बदले, संशोधन की हुई अपनी रोमन लिपि का प्रचार करना चाहते हैं । ये लोग जहाँ जहाँ, जिस जिस देश में, जाते हैं, वहाँ वहाँ धर्म-प्रचार करते करते क्या क्या लीलायें करते हैं, इसके उल्लेख की ज़रूरत नहीं। उदाहरण के लिए आगरे के उन पादरी साहब का नाम ले लेना ही बस होगा जिन्होंने, कुछ ही समय पूर्व, प्रयाग में सर जेम्स म्यस्टन के उपस्थित रहते, कुछ बाते बहुत ही औदार्य दर्शक कह डाली थीं, जिनके विषय में उन्होंने पीछे से यह भी कहने की कृपा की थी कि मुझे न मालूम था कि मेरी कही हुई बातों की खबर अखबारवालों को लग जायगी । परन्तु इससे यह न समझना चाहिए कि सभी पादरी ऐसे होते हैं। नहीं, अनेक ऐसे भी हैं जो दूसरोंके धर्म, नीति और आचार पर अनुचित आक्षेप किये बिना ही अपने धर्म का उपदेश और प्रचार करते हैं।