पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/२२८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२३
कवि सम्मेलन


जमघट रहा । कविवर ठाकुर गोपालशरणसिंहजी उसके सभापति थे । आप बोलचाल की भाषा में कविता करते हैं और सुकवि हैं । आपकी कवितासरस और प्रसाद्गुणपूर्ण होती है। कवि-समेल्लन में आपने जो प्रारम्भिक भाषण किया था वह अनति-विस्तृत होकर भी बड़े महत्त्व का है। व्रजभाषा और बोल- चाल की भाषा में की जानेवाली कविता के सम्बन्ध के विचार जो आपने उसमें व्यक्त किये हैं वे बड़ी खूबी से किये हैं। आपने सच बात भी कह दी है, और प्रकट विरोध-भाव को बचा भी दिया है । पर, सुनते हैं,उनके इस सौजन्य को भी कुछ अहंमानी जनों ने दाद न दी। उन्होंने बोलचाल की भाषा की कविता पर आक्षेप कर डाले और कुछ आदरणीय कवियों पर कटाक्ष भी किये । सभापति ठाकुर साहब ने सम्मेलन ही के मञ्च से अपनी "ब्रज-वर्णन" नामक जो रसवती और हृदयाह्लादकारिणी कविता सुनायी थी वह बोलचाल ही की भाषा में थी। अक्षेपकारियों के आक्षेपों का सबसे बढ़िया उत्तर और सबसे अच्छा समाधान उसीका पाठ था। परन्तु, खेद है, उससे भी उन्हें सन्तोष नहीं हुआ । इस कारण ठाकुर साहब को, अपने अन्तिम भाषण में, उनके कटाक्षों का उत्तर देना और उनकी तर्कत्यक्त उक्तियों का खण्डन करना पड़ा।

व्रजभाषा की कविता के पक्षपातियों को जानना चाहिए कि अब उसका समय गया। उसका तिरोभाव अवश्यम्भावी है। अब वह पुरानी प्राकृत भाषाओं के काव्य और साहित्य को तरह केवल पुस्तकों ही में पायी जायगी । समय को उसकी