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देवनागरी-लिपि के प्रचार का प्रयत्न

यथासंभव बहुत कुछ प्रबन्ध कर दिया गया है। पर यह नहीं हो सकता कि जिस मध्यप्रदेश में ९६॥ फ़ी सदी हिन्दू और केवल ३॥ फ़ी सदी मुसल्मान हैं वहां मुसल्मानों के लिए उर्दू पढ़ाने का अलग प्रबन्ध किया जाय। इस दशा में मुसल्मानों को भी हिन्दी सीखनी चाहिए ।

परन्तु इसके दूसरे ही दिन चीफ़ कमिश्नर साहब के उपदेश की उलटी टीका हुई; हिन्दी की निन्दा की गई; मालवीयजी ने कांग्रेस में जो वक्तृता हिन्दी में की थी उसकी हंसी उड़ाई गई; उर्दू सारी भाषाओं की रानी (!) बतलाई गई-“Urdu is the Queen of Languages" | बेहतर होगा, अब अंगरेज़ी गवर्नमेन्ट अपनी भाषा को हटा कर इस रानी को उसकी जगह दे दे। मुसल्मान उर्दू इस लिए चाहते हैं कि उसके बिना उनके धर्म में बाधा पहुंचती है। और हिन्दू ! जो हिन्दू उर्दू पढ़ते हैं उनकी धर्म-बुद्धि शायद अधिक निर्मल हो जाती होगी। मुसलमान आनन्द से उर्दू पढ़े, उसकी शिक्षा के लिए मदरसे खोले, उसके साहित्य की वृद्धि करें। यदि वे इसी में अपनी भलाई समझते हैं तो समझा करें, किसीको करना ही क्या है। वे सिर्फ इतनी ही उदारता दिखावे कि हिन्दुओं को अपनी भाषा और अपनी लिपि सीखने दें और दोनों भाषाओं और लिपियों का मुकाबला करते समय सचाई और यथार्थ-वाद से दूर न जा पड़ें।

लखनऊ से इण्डियन डेली टेलीग्राफ़ नाम का एक दैनिक पत्न, अँगरेजी में, निकलता है। यह पत्र हमारे मुसल्मान