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मर्दुमशुमारी की रिपोर्ट में हिन्दी उर्दू

भी वैसा ही करते हैं। इस दशा में किसी एक ही पक्ष को अधिक दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं। इसमें सन्देह नहीं कि भाषा सीधी सादी होने ही से लोग उसे अधिक पसन्द करते हैं। अतएव विषय का लिहाज़ रखते हुए यथासम्भव सरल ही भाषा लिखना चाहिए।

ब्लन्ट साहब के अनुसार पढ़े लिखे आदमी अधिकतर उर्दू भाषा और फ़ारसी लिपि ही को पसन्द करते हैं। परन्तु आपने उर्दू और हिन्दी के अखबारों और पुस्तकों की जो तालिका प्रकाशित की है उससे यह बात बिलकुल ही नहीं साबित होती। उससे तो उलटा यह साबित होता है कि वनागरी लिपि में लिखी हुई हिन्दी बराबर उन्नति करती चली जा रही है और उसकी यह उन्नति उर्दू की उन्नति से बहुत अधिक है। नीचे की तालिका देखिए।

अखबार और सामयिक पुस्तकें।

साल उर्दू हिन्दी
अख़बारों आदि
कि संख्या
कापियों का
संख्या
अख़बारों आदि
कि संख्या
कापियों
की संख्या
१८६१ ६८ २६२५६ २८ ८००२
१९०१ ६६ २३७५७ ३४ १७४१६
१६९१ ११६ ७६६०८ ८६ ७७७३१

० वर्ष पहले हमारी जिस क्लिष्ट हिन्दी में सिर्फ़ २४