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भारतीय भाषायें और अंँगरेज़


लिखी हैं। पूर्वोक्त साहबों में से एक साहब अपनी संस्कृत- विद्वत्ता के लिए बेतरह मशहूर थे। वे बहुत दिनों बाद एक दफे बम्बई आये । बम्बई के पण्डितों ने उनको एक अभिनन्दन-पत्र संस्कृत में सुनाया। जब साहब उत्तर देने को खड़े हुए तब लोगों की आशा आसमान छूने लगी। उन्होंने समझा अब धाराबाहिनी संस्कृत भाषा सुनने को मिलेगी। परन्तु साहब लगे कर्णकटु अँगरेज़ी शब्दों से अभिनन्दन-कर्ताओं के कान कोंचने । इसपर उन्हें बेहद्द निराशा हुई। इसी तरह अरबी जानने में अरबवालों के भी कान काटनेवाले एक अँगरेज को उस साल, मुसलमानों ने,नागपुर में या कहीं और अरबी में एक प्रशंसापूर्ण लेख सुनाया, पर जबाब में इस अरबी के भी प्रचण्ड पण्डित ने अँगरेज़ी ही बूकी । एक साहब ने फारसी में सबसे ऊँचे दरजे का इम्तिहान पास किया था। विकट फारसीदाँ होने के कारण एक वार वे फारिस भेजे गये । वहां आपको एक निहायत ही अजीब बात मालूम हुई । आपने देखा कि फारिस में आपके कदम पड़ते ही फारसवाले फारसी बोलना ही भूल गये।

यदि और लोग हिन्दुस्तानी भाषा न सीखें तो न सही,पर जिन अफसरों को हिन्दुस्तानियों से दिन रात काम पड़ता है उन्हें तो ज़रूर हो सीखना चाहिए, विशेष करके ज़िले के हाकिमों को। उन्हें हिन्दी में उच्च परीक्षा पास करने पर हज़ारों रुपये इनाम भी मिलता है। तिस पर