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साहित्यालाप


करते हैं। अतएव जो लोग आज तक केवल उर्दू ही के कीड़े बने हुए हैं उन्हें अबसे हिन्दी भी सीखनी चाहिए। हमें यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हमारे बच्चे स्कूलों, पाठशालाओं और घरों पर सबसे पहले हिन्दो ही सीखेंगे। जो लोग उर्दू भाषा और फ़ारसी लिपि में अख़बार और मासिक पुस्तकें निकालते हैं उन्हें हज़ार प्रयत्न करके हिन्दी भी सीखनी चाहिए और यदि सुभीता और सम्भव हो तो अपना कारोबार चलाने के लिए हिन्दी का ही आश्रय लेना चाहिए। जिनको अपनी मातृभाषा और अपनी पवित्र लिपि का ज़रा भी अभिमान है उनको माननीय महोदय की मातृ-भाषा-भक्ति का अवश्य ही अनुकरण करना चाहिए । यदि हम अब भी उनसे यह गुण न सीखेंगे तो कभी न सीखेंगे ।

(ञ) हिन्दी सचमुच ही कोई भाया नहीं ! १९०० या १८९८ ईस्वी के पहले के किसी भी सरकारी काग़ज़ में सरकार ने उसे कहीं भाषा नहीं माना ! जब से इस सूबे में शिक्षा-विभाग बना और जब से स्कूल, कालेज और मदरसे खुले तब से जो हिन्दी और उर्दू की पढ़ाई का अलग अलग प्रवन्ध है वह सब माया-प्रपञ्च है ! १९०० के पञ्चीस तीस वर्ष पहले ही पदार्थ-विज्ञान-विटप, जीव-विज्ञान-विटप,सरल त्रिकोणमिति, भाषा-काव्यसंग्रह, अवधदेशीय भूगोल,भारतवर्षीय इतिहास आदि हिन्दी की जो सैकड़ों पुस्तकें गवर्नमेंट के स्कूलों में पढ़ाई जाती थीं, वह सब ऐन्द्रजालिक खेल था ! पण्डित वंशीधर वाजपेयी ने कोई ५० वर्ष पहले