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साहित्यालाप

विरोध करने पर, बहुत दिनों तक उसका प्रचार रुका रहा हो।

वाबू रामदाल सेन ने बँगला में ऐतिहासिक रहस्य नाम की एक पुस्तक, तोन भागों में, लिखी है। उसमें आपने व्याकरण-प्रणेता पाणिनि के समय आदि का भी विचार किया है । आपका विचार युक्तियुक्त और प्रमाणपूर्ण है । आपके मत में पाणिनि का समय ईसवी सन से पाँच छ सौ वर्ष पहले है । पर मोक्षमूलर साहब को पाणिनि के समय में भी लिपिकला के उत्पन्न होने में शङ्का है । इस विषय पर आपने अपने संस्कृत के इतिहास में बहुत कुछ शङ्का-समाधान किया है । साहब की सब शङ्काओं की अवतारणा करने की हम, इस छोटे से लेख में, ज़रूरत नहीं समझते । हम सिर्फ दो एक स्थूल बातें कह कर ही साहब की शङ्काओं का समाधान करने को चेष्टा करेंगे। पाणिनीय व्याकरण के आरम्भ ही में अ इ उ णऔर ऋ ल क्आ दि जो माहेश्वर सूत्र हैं उनमें सारी वर्णमाला आ गई है। यदि पाणिनि के समय में-समय में क्यों, उससे भी बहुत पहले–वणो की सृष्टि न हुई होती तो उनका नाम इन सूत्रों में क्योंकर आता ? पाणिनि का “उरणरपरः” सूत्र भी लिपि की सृष्टि का सबसे बड़ा प्रमाण है । फिर एक बात और है । जब तक कई भाषा अच्छी तरह लिखी नहीं जाती तब तक उसका व्याकरण नहीं बनता। संस्कृत-व्याकरण में बहुत से नियम ऐसे हैं जो अगले वर्षों से सम्बन्ध रखते हैं। व्यवधान और अव्यवधान का भी उसमें अनेक जगह पर