(घ )हिन्दी-भाषा अच्छी तरह समझ लेना मुसलमानों के लिए कठिन काम है, क्योंकि उसमें संस्कृत के लम्बे लम्बे शब्द रहते हैं।
(ङ) हिन्दी-लिपि लिखनेवाले स्वयं हो उस लिपि को आसानी से नहीं पढ़ सकते । उसे लिखने में फ़ारसी लिपि से अधिक देर भी लगती है। मुसलमान कठिनता से उसे सीख सकते हैं।
यह सुन कर कौंसिल के प्रेसीडेन्ट ने कहा कि आपका यह कथन अप्रासङ्गिक है । तब और कुछ कह कर आप बैठ गये।
गवर्नमेंट की तरफ़ से माननीय मिस्टर बर्न ने भी इस प्रस्ताव का प्रतिवाद किया। आपने जो दलीलें पेश की उनमें से कुछ नीचे दी जाती हैं---
(च) मुन्सिफों और सब-जजों को नागरी-लिपि में लिखी हुई बहुत कम दस्ततावेज़ें देखने की ज़रूरत पड़ती है। फ़ारसी लिपि ही में अधिकांश दस्तावेज़ें पेश की जाती हैं।
(छ) हाईकोर्ट के एक हिन्दुस्तानी जज की राय है कि इस सबे के शिक्षित आदमियों को हिन्दी पढ़ने में बड़ी दिक्कत होती है। एक बारिस्टर ने मुझसे उस दिन यह कहा कि हिन्दी की कुछ दस्तावेज़ें पढ़ सकने-वाला एक भी आदमी इलाहाबाद में उन्हें न मिला।
(ज) जो लोग कचहरियों की शरण लेते हैं वे वकीलों और मुखतारों से अर्ज़ियां वगैरह लिखाते हैं और ऐसे वकील-