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हिन्दी की वर्तमान अवस्था


मुसलमान सिविलियन तक क्या अपनी अपनी भाषाओं में पुस्तक-रचना नहीं करते? क्या हिन्दी भाषा-भाषियों की उच्च शिक्षा में सुरख़ाब का पर लगा हुआ है ? यदि हमें अंँगरेज़ी से अतिशय प्रेम है तो हम खुशी से उसमें अपने विचार प्रकट कर सकते हैं, लेख लिख सकते हैं, पुस्तक-रचना कर सकते हैं। परन्तु क्या वर्ष छः महीने में एक आध लेख भी हिन्दी में लिखडालना हमारे लिए कोई बड़ी बात है ? हमें याद रखना चाहिए कि अँगरेज़ी लेखों और पुस्तकों से समाज या देश के बहुत ही थोड़े लोगों को लाभ पहुँच सकता है। अतएव उसकी तरफ़ कम और अपनी निजकी भाषा की तरफ़ हमें विशेष सदय होना चाहिए। जिस समाज में हम उत्पन्न हुए हैं---जिस प्रान्त या देश में हमने जन्म लिया है---उसका विशेष कल्याण उसीकी भाषा को उन्नत करने से हो सकता है । जिस समाज और जिस देश की बदौलत हम सभ्य, शिक्षित और विद्वान हुए हैं उसे अपनी सभ्यता, शिक्षा और विद्वत्ता से लाभ न पहुंचाना घोर कृतघ्नता है । इस कृतघ्नता के पाश से हम तब तक नहीं छूट सकते जब तक अपनी निजकी भाषा में पुस्तक-रचना और समाचार-पत्र-सम्पादन् करके अपनी सभ्यता,अपनी शिक्षा और अपनी विद्वत्ता से सारे जन-समुदाय को लाभ न पहुँचावें।

आइए, तब तक हमीं लोग, अपनी अल्प शक्ति के अनुसार, कुछ विशेषत्वपूर्ण काम कर दिखाने की चेष्टा