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हिन्दी की वर्तमान अवस्था


करते; ढूँढ़ ढूँढ कर ठेठ हिन्दी-शब्द काम में लाते हैं। मेरी राय में शब्द चाहे जिस भाषा के हो, यदि वे प्रचलित शब्द हैं और सब कहीं बोलचाल में आते हैं तो उन्हें हिन्दी के शब्द-समूह के बाहर समझना भूल है। उनके प्रयोग से हिन्दी की कोई हानि नहीं; प्रत्युत लाभ है। अरबी-फ़ारसी के सैकड़ों शब्द ऐसे हैं जिनको अपढ़ आदमी तक बोलते हैं। उनका वहिष्कार किसी प्रकार सम्भव नहीं।

६---उन्नति के उपाय

तीस चालीस वर्ष पहले हिन्दी साहित्य की जो अवस्था थी उससे इस समय की अवस्था अवश्य अच्छी है । परन्तु इस देश की अन्य समृद्धिशालिनी भाषाओं की अपेक्षा अब भी वह अत्यन्त हीनावस्था में है। हम हिन्दीभाषाभाषियों के लिर यह बड़े ही परिताप की बात है । जैसा ऊपर, एक जगह पर, कहा जा चुका है पुस्तको ही द्वारा ज्ञान-वृद्धि होती है। और, जो समा या जो जन-समुदाय जितना ही अधिक ज्ञानलम्पन्न होता है वह लौकिक और पारलौकिक, दोनों विषयों में, उतनी ही अधिक उन्नति कर सकता है। अतएव अपनी सामाजिक, नैतिक, धार्मिक आदि हर तरह की उन्नति के लिए सब विषयों की अच्छी अच्छी पुस्तकों की हिन्दी में बड़ी ही आवश्यकता है। हिन्दी में इस लिए कि यही हमारी मातृ-भाषा है। इसी भाषा में दी गई शिक्षा से समाज का सर्वाधिक अंश लाभ उठा सकता है। इसी भाषा में वितरण