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साहित्यालाप


पुस्तकों को छोड़ कर उल्लेख-योग्य अधिक पुस्तकें मेरे देखने में नहीं आई।

१५--भाषा

विषय के अनुसार भाषा में बहुत कुछ भेद हो सकता है। जैसा विषय हो, और जिस श्रेणी के पाठकों के लिए पुस्तक लिखी गई हो, तद्नुसार ही भाषा का प्रयोग होना चाहिए। बच्चों और साधारण जनों के लिए लिखी गई पुस्तकों में तरल भाषा लिखी जानी चाहिए । प्रौढ़ और विशेष शिक्षित जनों के लिए परिष्कृत और अलङ्कारिक भाषा लिखी जा सकती है। वैज्ञानिक ग्रन्थों में पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है। अतएव उनमें कुछ न कुछ क्लिष्टता आ ही जाती है। वह अनिवार्य है । मैं तो सरल भाषा के लेखक ही को बहुत बड़ा लेखक समझता हूं। लिखने का मतलब औरों पर अपने मन के भाव प्रकट करना है। जिसका मनोभाव जितने ही अधिक लोग समझ सकेंगे उसका प्रयत्न और परिश्रम उतना ही अधिक सफल हुआ समझा जायगा। जितने बड़े बड़े लेखक हो गये हैं प्राय: सभी सीधी सादी और बहुजन-बोधगम्य भाषा के पक्षपाती थे।

आजकल कुछ लेखक तो ऐसी हिन्दी लिखते हैं जिसमें संस्कृत-शब्दों को प्रचुरता रहती है। कुछ संस्कृत, अँगरेजी, फ़ारसी, अरबी सभी भाषाओं के प्रचलित शब्दों का प्रयोग करते हैं । कुछ विदेशीय शब्दों का बिलकुल ही प्रयोग नहीं