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साहित्यालाप


में आ जाय----चाहे वह बोल-चाल की भाषा हो चाहे ब्रज की भाषा। ब्रज-भाषा न जानने या न लिखनेवालों को शाखा-मृग कहने का अब समय नहीं। काव्यों की रचना और उनका विषय ऐसा होना चाहिए जो देश और काल के अनुकूल हो। पढ़नेवाले के हृदय पर कविता पाठ का कुछ असर होना चाहिए; उससे सदुपदेश मिलना चाहिए; और कुछ नहीं, तो थोड़ी देर के लिए प्रमोदानुभव तो अवश्य ही होना चाहिए। भारत में अनन्त आदर्श-नरेश, देशभक्त, वीर-शिरोमणि और महात्मा हो गये हैं। हिन्दी के सु-कवि यदि उनपर काव्य करें तो बहुत लाभ हो। पलाशी का युद्ध, वृत्रसंहार, मेघनाद वध और यशवन्तराव महाकाव्य की बराबरी का एक भी काव्य हिन्दी में नहीं। वर्तमान कवियों को इस तरह के काव्य लिख कर हिन्दी को श्रीवृद्धि करनी चाहिए।

बाबू हरिश्चन्द्र के कई काब्य और अनुवाद बहुत अच्छे हैं । राजा लक्ष्मण सिंह-कृत मेघदूत का अनुवाद भी प्रशंसा के योग्य है। संस्कृत-काव्यों के जो और अनेक अनुवाद हिन्दी में हुए हैं वे उतने अच्छे नहीं । गोल्डस्मिथ के "हरमिट" का अनुवाद 'एकान्तवासी योगी' भी अच्छा है। पुराणादि के जो अनेक अनुवाद हिन्दी में हुए हैं उनसे हिन्दी-साहित्य को लाभ अवश्य हुआ है। पर उनमें पंडिताऊ ढंगवाले अनुवादों की भाषा संशोधन-योग्य है।

कुछ नाटकों को छोड़ कर हिन्दी में अच्छे नाटक भी नहीं।