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हिन्दी की वर्तमान अवस्था


कर्तव्य को अब पहले की अपेक्षा अधिक समझने लगा है। सुरुचि का भी अधिक ख़्याल रक्खा जाता है, लोकशिक्षण का भी, और जन समुदाय के हित तथा मत-बाहुल्य का भी।

परन्तु, जब हम अँगरेज़ी और एतद्देशीय अन्य समुन्नत भाषाओं के इस साहित्य की ओर देखते हैं तब हमें अपनी भाषा की हीनावस्था को देख कर दुःख और आश्चर्य होता है । दुःख का कारण तो स्पष्ट ही है। आश्चर्य का कारण यह है कि हिन्दी बोलनेवालों की संख्या इतनी अधिक होने पर भी हमारी मातृभाषा की इतनी अनुन्नत अवस्था ! इस दुरवस्था के कई कारणों में से तीन मुख्य हैं। पहला कारण लोकशिक्षा की कमी; दूसरा कारण मातृभाषा से शिक्षित जनों की अरुचि; तीसरा कारण पत्रसम्पादकों और सञ्चालकों की न्यूनाधिक अयोग्यता है।

जितने समाचारपत्र इस समय हिन्दी में निकलते हैं उनमें से प्रायः सभीके सम्पादकीय लेखों और समाचारों के लिए, अनेक अंशों में, पायनियर, बङ्गाली, अमृत बाज़ार पत्रिका और ऐडवोकेट आफ़ इंडिया आदि अँगरेज़ी पत्र उत्तमर्ण का काम देते हैं । मासिक पुस्तकों का भी यही हाल है। वे भी प्रायः औरों के दिमाग़ से निकले हुए लेखों की छाया और अनुवाद ही से अपना कलेवर पूर्ण करती हैं। प्रत्येक भाषा की आदिम अवस्था में बहुत करके यही हाल होता है। अपने से अधिक उन्नत भाषाओं की सहायता ही से वे अपनी अंग-पुष्टि करती हैं।