अपनी विद्वत्ता प्रकट की ;कहीं कभी वर्ष छः महीने के लिए एक समाचारपत्र निकाल कर सम्पादक बन बैठे ! बस यही
किया !! और कुछ नहीं !!!
आधुनिक काल में जो कुछ उन्नति हिन्दी की हुई उसके विशेष कारण पण्डित वंशीधर बाजपेयी, बाबू हरिश्चन्द्र, राजा शिवप्रसाद और पण्डित प्रतापनारायण इत्यादि प्रसिद्ध प्रसिद्ध लेखक हैं । जीवन चरित, नाटक, समालोचना, मासिक पुस्तक और समाचारपत्र इत्यादि लिखना और निकालना पण्डित बंशीधर और बाबू हरिश्चन्द्र ही ने हम सबको सिखलाया। जो कुछ इस समय हिन्दी में देख पड़ता है उसका सूत्रपात प्राय: उन्हीं ने किया। नागरी-प्रचारिणी सभा भी, अब, इस समय, हिन्दी की बहुत कुछ उन्नति कर रही है। उसीके उद्योग से हिन्दी को गवर्नमेंट ने कचहरियों में स्थान दिया है।
इस समय देखने में आता है कि जो लोग किसी प्रकार समाचारपत्र अथवा पुस्तक लिखने के योग्य नहीं वे भी हाथ की चपलता दिखाये बिना नहीं रहते। यह बहुत बुरी बात है। मनुष्य को अपनी योग्यता अथवा अयोग्यता का विचार करके कोई काम करना चाहिए। इस प्रकार के लेखक अपना तो उपहास कराते ही हैं ; अपने साथ हिन्दी भाषा को भी कलङ्कित करते हैं। अतएव ऐसे लोगों को लेखनी कदापि न उठानी चाहिए। इस समय जो बुरे बुरे उपन्यास बनते जाते हैं उनका बनना बन्द होना चाहिए। जिस भाषा की उन्नति हुई है उसमें पहले उपन्यासों ही की अधिकता हुई है।