कीन तुम सब मनभाई रोकत भयेन को परछाहो ॥ येहै हेमपुर अष्टसुरन सुत दिनपतिही को बास। समुझ बूझ के काम कीजिये राप राष उर बास ॥ यो प्रतषेद अलंकृत जबहू मुमुषी सरस मुनायो। सूर कहो मुसुकाय प्रानप्रिय मो मन एक गनायो॥५॥ उक्ति रुकुमिनी की कृष्ण प्रति दुतीरास बृष दिनपति भान यह वृषभानपुर नाहीं है जहां तुम मनभावती बातें करी तुम्हारी परछाहीं कोई नाही (न) रोक सको यह हेम नाम कुंदनपुर है अष्ट कहे वसु सुर कहे देव है बसुदेव के पुत्र दिनपति सूरमनि को यामें बास है ताते जो काम करत हौ समुझ बूझ के करौ उर में वास राष के यह जो प्रतषेद अलंकार सुमुषी रुकुमिनि ने कहो तब मुसुवाई कृष्ण कही कै हमारी मत ते जैसो अहीर तैसो वीर या मे दो जागा प्रतषेद बृषभानपुर अहीरन को ग्राम में रुकमिनि दिषायो अरु कृष्ण दोइ लक्षण । दोहा-सो प्रतिषेद प्रसिद्ध अर्थ निषेद जाई ॥१॥९॥ - अघहरसोहत सुरन समेत। नीतन ते बिछरो सारंगसुत कुंत अग्र ते बंदन रेष ॥ विप्र विचित्र रेष दधिसत ग्रह रेसम छद घन ऊपर आज । पुंडरीक सुतघट गै उर ते बानर पुत्र सजे बिन साज ॥ दधिसुत दोपत तज मुरझानो
पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/९०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।