भोग ॥ लाभ थान पंचमी कामधुज ग्रह निध ग्रह में आई। मान लेहु मन अपने भू सब हरी भार इन भाई॥ बान वर्ष मैं कब देगी कही तिहारी पूरी। सूरदास दोउं परे पाइतर भूषन चित्र समूरी॥८१॥ उक्त कवि की हे विष जू हमारे बड़े पुन्य हैं जो जजमान जान आपु इहां आये एक वार जो लगनकुंडली मोको तुम सुनाई रही सो फेर सुनावहु सो सुन रिष कहन लगे संवत ते छठये मास भादों आठों तिथि है रवि ते चौथ बुध वार पुन्न पक्ष कृष्ण पक्ष वेद कहे चौथो नक्षत्र है रोहनी हरपन नाम जोग उदार है दुतीय वृष को सिव भूषन चंद है सो तन को सुषकारी (सुषकरता) है केहरि कहे सिंघ (सिंह)रास के सूर्य है सेस भार भूमि जीति (लैहैं) वान नाम पंचम पुत्री कन्या के ससी सुत बुध है ताते मदन को नाम आत्मभू नाम पुत्र बहुत उपराजीहै (उपजाइहैं) सास्त्र कहे छठयें तोलत नाम तुला के रवि सुत सनि सुक्र यह जोग सत्रुहन है मुनि कहे सातवें वसु नाम आठवें ग्रह राहु ताते तिया बस द्वैहैं अरु भाग भवन में भूमिसुत मंगल है तातें ऐश्वर्य भोग करे हैं लाभ थान में पंचमें वृहस्पत सो कामधुज मीन के है सो ग्रह निध नवे निध घर आई हैं सो यह जानो के इन भूमिभार हरो वान कौन बरस में ढहै यह प्रश्न नंद की सो न पंडित कही तिहारी कही सत्य है कि पांचई बरस में यह सुन नंद जसोदा पाइ (पै) परे या पद में बिचित्र अलंकार रिघरत भाव धुन है लच्छन । ____दोहा-चित्र प्रश्न उत्तर दयो, एक सब्द में होई । रिषि रत ते रत भावधुन, कहत सवै कबि लोइ ॥१॥८॥ आवत थी वृषभाननंदनी आजु सपी के संग । ग्रह अष्टम में मिलो नंदसुत
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