[ 1 आज अकेली कुंजभवन में बैठी बाल बिसूरत । तरुरिघुपतिसुत को सुच सांची जान साँवरो मूरत ॥ दरभूषन घनषन उठाइ दै नीतन हरिघर हेरत । तनु अनुगामी मनि मै भैके भीतर सुरुच सकेरत ॥ ताहि ताहि सम करि करि प्यारी भूषन आनन माने। सूरदास वै जो न सुलोचन संदर मुश्च बषाने ॥३॥ आज अकेली इति उक्ति सषी की के आज अकेली कुंजभवन में बाल बिसूरत है तरुरिपु जमुना पति कृष्ण सुत काम की स्याम मूरत जान कर के दर दुआर ताको भूषन पट छन छन उठाइ के नीत नयनन हरिघर पयोधर कुच हेरत है तनु अनुगामी जो छाया सो मनि मै भय कहै भीत में सुंदर रूचसो देवत है ताके समान ताही के करत प्यारी अनन्या- अलंकार मानत है सब जान ग्यालजोबना नाइका सुंदर अपनी रुच ते वषानत है ताको लच्छन । दोहा-जोबन ही के ज्यान ते, ग्यात जोबना होइ । र उपमे को उपमान ते, कहत अनन्या सोइ ॥ टिप्पणी-~-३ रा सूरसागर के अर्थ में सरदार कवि ने ज्यों का त्यों रक्खा है। तसरिपु नदी नदी ले अर्थ यहाँ जमुना लिया है। नमुनापति कृष्ण उन का पुन्द्र प्रद्युम्न काम का अवतार हैं अतएव काम का अर्थ लिया गया। - पं० महादेव पाठक जी हरिघर का अर्थ यों करते थे हरि बानर घर वृक्ष और वृक्ष का नाम पयोधर है और पयोधर का अर्थ कुच है. अधवा हरि अमृत घर समुद्र उस का नाम पयोधर है क्योंकि पयोधर का अर्थ यह है। दोहा-~-मेघ पयोधर बृच्छ कुच, अद्रिपयोधर आक ।
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