- हरि उर पलक इति । या पद बिषे सषी की उक्त तें मुगधा नाइका लक्षा अलंकार होत है। दोहा-नव जोबन को आगमन, मुगधा कहिये ताहि ।। इक बिन दो बिन तीन बिन, लुप्ता भूषन आहि । हे हरि पलक धीर धारो तिहारे हेतु मनसिज सब वाके अंग में सोभा धरत हैं। भूमिसुत किवाछ अरि बानर मित्र राम शत्रु रावन पुर लंक लंक जो कटि है ताते सुअछर सुवरन निकासै है ग्रीषम रिपु मेघ पयोधर कुचन में भरत है। भाँन ते तीसरे मंगल ताकी जननी भूमि ताके हित घन ताकी सहचरी बिजुरी ताको गुन चंचलता लेकर प्रथम पहिल तातें सारँग मग है जाके उपमानं ऐसे नेत्रन में धरत है अर्थ चंचल करे है । हान दिन रात भय ते रात्री को पति ससि ताकै सी सोभा रंच थोरी राजत है मुख में | इहाँ मुख उपमेय नाहीं है ससी उपमान सी वाचिक तातें लुप्ता है । अज्ञान कहै अज्ञात छपी उपमा ते लुप्तोपमा इति । बराढी (जिला शाहाबाद परगना भोजपुर) निवासी पंडित महादेव पाठक इस सूरसागर का अर्थ निम्न लिखित करते थे। भूमिसुत का अर्थ भौभासुर अर्थात् नरकासुर और उस का शत्रु कृष्ण और उन का मित्र बलराम और बलराम का अर्थ राम कर के फिर रघुवंशी राम को लगाते थे और उनका रिघु रावन वा कंभकर्ण उस का पुर लंका और शेष अर्थ पूर्ववत् करते थे। .. रही यह शंका की बलराम का नाम राम नहीं है परंतु यह शंका व्यर्थ है क्योंकि मंगलवोष में राम का यों अर्थ लिखा है । राम० ना० पु० परशराम, श्रीरामचन्द्र जी, श्रीबलराम जी गु० ३ । और शब्दकोष में यों लिखा है। सं. राम ( रम् खेलना, जिस में योगी रमते हैं अर्थात् जिस के ध्यान में लगे रहते हैं ) पु० परशुराम ( यह विष्णु का अवतार यमदग्नि ऋषि के घर त्रेता युग के शुरू में अन्यायी क्षत्रियों को दंड देने के लिये हुआ था) २ रामचन्द्र ; दशरथ राजा का बेटा (यह विष्णु का अवतार अयोध्या के राजा दशरथ के घर त्रेता युग के अन्त में लंका के राजा रावण को मारने के लिये हुआ) ३. बलराम ; श्रीकृष्ण का बडा भाई जो द्वापर युग के अन्त में रोहिणी के पैदा हुआ; ४ ग० सुन्दर, मनोहर, शुभ, ५ सुखदाई । और अनकार्थ मंजरी में लिखा है। दाहा-राम सितासित सुभग पसु, परसुराम बलराम । get राम ब्रह्म आतम पवन, रामा ताको बाम ॥१॥ दुसरा अर्थ पं० महादेव पाठक यों भी करते थे कि भूमिसुत का अर्थ भाग इस का रिपु पानी मीत सांप (शेष) रिपु मेघनाद पुर लंका और पूर्ववत् ।
पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।