[४०] 'जसवंत सिंह बघेले राजा तिरवा जिले कन्नौज संवत् १८५५ में हुए ये महाराज संस्कृत भाषा फ़ारसी विद्या में बड़े पंडित थे अष्टादश पुराण औ नाना ग्रंथ साहित्य इत्यादि सब शास्त्रों के इकट्टा किये शंगारशिरोमणि ग्रंथ नायका भेद में १ औ भाषाभूषण अलंकार में २ औ शालिहोत्र ३ ये तीनि ग्रंथ इन के बनाये हुए-बहुत अद्भुत हैं संवत १८७१ में स्वर्ग बास हुवा । शृंगारं शिरोमणि ग्रंथे। ले सपने अपने मन की दुलही उलहीं छबि भाग भरी सी । अंक निशंक सो ले परयंक लला मुख चूमि सुचारु घरी सी ॥ यों लपटी चपटी हिय सों जसवंत बिशाल प्रशून छरी सी । नैनन के खुलते वह मूरति पास परी उड़ि जात परी सी ॥१॥ छूटी लटें लटकैं मुख पै जलबिंदु लसैं मनो पोहत मोती । बोलत बोल तमोल बिराजत राजत हैं नथ में शशि गोती ॥ ओज सरोज उरोजकली सभली त्रिवलीतट आनंद ओती । जोरत नेह मिरोरति भौंह सु चोरत चित्त निचोरत धोती ॥२॥ ___ हेरो तौ हेरो न जात भटू हरि हेरे बिना नहिं लागत नौको । नैन जरै न मरे न भली बिधि कौतुक कासों कहौं यह जी को ।। को समुझै जसवंत इसे हौं ताको करों बलि पौरि जनी को। जीवं कली कहे लाज तुरंग कहो कहिबो करो लाज के जीको ॥ ३॥ लांबी लांबी लटै लोनी लटकत लंक लौं लौं लीक लागि लोचन उडत झक झोरि झोरि । छूटि गये सकल सिंगारहार टूटि गये लूटि गये लपटि भुअंग अंग कोरि कोरि ॥ सकुचि सयानी अंग रानी प्राण प्यारे बाल प्यारे जसवंत के निकट तन तोरि तोरि । तोरि तोरि चित हित जोरि जोरि लाडिले सों छोरि छोरि कॅचकी नम्हात मुख मोरि मोरि ॥ ४ ॥ शालिहोत्र ग्रंथे। जधै जमाय दुबो घुटुवान लौं पीडुरी ढीली दुहू दिशि चालौ । कानन मध्य में दीठि रहे थिरता करि के कटि नेकु न हालै ।। जानै तुरंगम के मन की गति चाहिए ता बिधि चाबुक घाले । सोई सवार कहे जसवंत बचाये चलैं जो तमाल दिवाळे ॥ १॥ __ भाषाभूषण ग्रंथे। दोहा-बिघन हरण तुमहौ सदा, गणपति होहु सहाइ । बिनती करजोरे करौं, दीजै ग्रंथ बनाई ॥
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