[ ३० । रसाल ॥ हादस सो तलफत पिय प्यारो सुरुच सांवरो लाल । सूरस्याम रतनावल पहिरो हो मंडित हितहाल ॥ २६॥ प्रथम १ मेष दुती २ वृष सूर्य कहै वृषभान तृतीय ३ मिथुन मिथुन हित चौथो कर्क अर्थ करि के सिंगार । पंच कहै सिंघ ता सम कटि करि कै षष्ट ६ कन्या सी चाल करी । सप्त तुला ताकी तोल कहे बराबरी । अष्ट ८ वृछि कहे बीछी सी मारत है। नवमो धन अर्थ ए धन तोको छाड अवर धन नहीं ताकत । दस १० मकर जिन राषै साल कहे गांस एका- दश ११ कंभ कहे उरोज लै मिलो बेग कहे तुरंत । द्वादश बारह मीन प्यारे पीतम के बिरह से मीन सी काहे तलफ बढाये है प्रीतम सो सरुच सो लाल को समारो स्याम रतनावली पहिरो मंडन करत है हाल तुम्हारो हित । ॥ २९॥ टिप्पणी-इस पद को सरदार कवि ने अपने टीका के ७० पद में लिखा है और अर्थ में कुछ घटाया बढ़ाया है अतएव ज्यों का त्यों नीचे लिखा है। ___भई है कहा प्रथम सी बाल । दुतीय सूर मिल सुता तुती हित चाहत त्यहि गुपाल ॥ चौथ सिंगार पंच कर षट बुध करी षष्टई चाक । सतई तोल आठ सो मारो फिरत लाल बेहाल ॥ नव तो छोड अवर नहीं ताकत दस जिन राषो साल । एकादस लै मिलौ बेगाह जानो नवल रसाल ॥ द्वादस सो तलफत पिय प्यारो सुरुच समारो लाल । सूरस्याम रतनावल पहिरो हो मंडिन हित हाल ॥७॥ मंडन सषी की उक्त नाइका प्रत । प्रथम रास मेष सी अचल कहा भई हो । दुती वृष सूर भानु तें बृषभानुसुता त्रिती मिलन हेत तोहि गुपाल चाहत है । चौथी करक कर के सिंगार पंचमें सिंह हे सिंह कट करी है षष्टई कन्या की चाल तूने । सप्तम तुला तराजू सो तोल अष्टम बिछीक बिछी सो मारो लाक बेहाल फिरत है । नव धन हे धन तोको छोड अवर के नाही चाहत दसयों मकर जहँ मान रूपी साल नन राषो । एकादस जो कुंभ है कुंभ के के मिलो नाइक नवीन रसाल हैं । द्वादस मीन सो तलफन है प्यारो प्रीतम सो सुरुच कर को लाल को समारो । स्याम रतनावली पहिरो है मंडन करत है हाल तुम्हारी हित । या पद में सुंगार करो चाहत तातें सषी मंडन लछन । मंडन सव संगार मंडै । सिंछा
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