। २९ । जीवन दान देहु । इहां नयन को अर्थ नीत नहीं जानत है । ऐसो नयन है। याते परकरांकुर अलंकार लच्छन चौपाई-साभिप्राय बिसेष जहीं है । परकर अंकुर कहत तहीं है ॥ चाहन गंध बैरी बीर। आपनो हित चहत अनहित होत छोडत तीर ॥ नत भेद बिचार बा बिनु इंद्रबाहन पास । सूर प्रस्तुत कर प्रसंसा करत पंडित नास ॥२८॥ चाहन इति। गंध के चाहनहार भँवर (भ्रमर) बरे वीर बैरी हैं जे आपन हित चाहत है आन को हित होत तीर नाम नजीक छोडत है तृतभेद ताल तातें जब बा जल जाइहै। तब आप इंद्रवाहन हाथी के कपोल पै रहत है सो वाकी करत है प्रसंसा परत पंडन कपोल चाहत है यामें भंवर को निन्दा कर नाइक प्रस्तुत ताकी निन्दा करत है याते प्रस्तुत प्रसंसा अलंकार । (नाइका प्रात आयो तातें पंडिता लछन । दोहा । अनत रहे आबेस पति, कहत पंडिता ताहिं । प्रस्तुत आ प्रस्तुत कहै । आ प्रस्तुत कवि नाह ) ॥२८॥ भई है कहा प्रथम सी बाल । दुतीय सुर मिलि सुता टति हित चाहत तोहि गुपाल ॥ चौथ सिंगार पंच करि कटि बुध करी षष्टयी चाल । सप्तम तोल अष्ट सो मारत फिरत नाथ बेहाल ॥ नवमो छोड अवर नहिं ताकत दस जिन राषै साल । एकादस लै मिलो बेगहूं जानहु नवल
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