[२६] राधे कैसे प्रान बचावै । परी महान विपत सीसन पर बीसन ताप तचावै ॥ सेसभारधरजापतिरिपुत्रिय जलजुत कबहुन हरै । बा निवास रिपुधररिपु लै सर सदा सूल सुष पेरै ॥बाचर नीतन ते सारंग अति बार बार झरलावै । देष- त भंवर कंज रस चाषत आपुन ते मुर- झावै । पन्नग सत्रु पुत्र रिपु पितु सुत हित पित कबह न हेरे। समासोति कर सूर भिंग को बार बारबर टेरे॥२५॥ उक्त नाइका पूर्व । राधे इति । राधे कैसे प्राण बचावै महाविपति सीस पै परी है ताते विस के ताप सों तचत है । सेस को भार भूधर परबत जा उमा पति शिव रिपु जलंधर तिया (तीय) छंदा जल बन जुत अर्थ वृंदावन । कबडूं नाहीं हेरत । बा (जल) निवास कमल रिपु चंद धर महादेव (शिव) रिपु काम सूल से लावत है । बा जल चर मीन नीतन नयनन ते सारंग जल छोडत है। अरु भँवर कंज रस देषत के आषु मुरझात है । पनंग नाग ते नग परवत ताके रिपु इंद्र पुत्र अर्जुन शत्रु करण पितु सूर्य सुत सुग्रीव हित रिछ नाम नषत ताको पति चंद्र नाहिं हेरत है समासोक्त नाम समउक्त कर कर भंग जो पतंग सूर्य है तिन को पुकारत उदित होहु या पद में भँवर कमल आ प्रस्तुत देष नाइक प्रस्तुत समझो ताते समासोक्त लच्छन । चौपाई-आ प्रस्तुत ते प्रस्तुत जानै । समासोक्त कवि ताहि बषानै ॥ टिप्पणी-इस भजन को सरदार कवि ने आगे बढ़कर कुछ घटा बढ़ाकर शिखा है वह ज्यों का त्यों अथ समेत नीचे प्रकाश किया जाता है। 'राधे क्यों कर प्रान बचावे। परी बिपत्त महान सीस पै बीसन ताप तचावे ॥ सेस भार घर जा पति रिपु तिय जल जुत कबहु न हेरे । बा निवास रिपु धर
पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।