पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२३

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भRE ___ [२२] आन ॥ कहा कहि किहिकै बुझावी देष सकतन हान । सर स्याम सुजान पाडून पसे कारो कान ॥ २१ ॥ दूसरा पाठ । भूमिसुत जो लियो गुन सो निदरसन मुहान । मानिन इति । ऐ याननी अजहू मान छाडो । तीन बिब कहै छवि दधिसुत चंद उतारत है। रामदल रिछ ताराजुत । तीन लल कहै छल ओ बल मिल कै छल बल भयो सो छल बल करि कै संग भयो है। अलि कहे है नाइके तोको कौन कहे के उनहि भले कहे जान है। डेढ लल कहै तिल तिल भर कल कहे विश्राम प्राण प्रियतम के प्राण नहीं लेत है । तुति की की कहै तीन की कीते छकी भई सो तू छकी है कि मेरो रूप रति के सम है पति कृष्ण ताको तो सम वृज कहै वज में दूजी आन कहे अवर दूसरी स्त्री नहीं है तात्पर्य तो सी बहुत है । लगी फिरत पचास तिति सौति फिरत है तेरी पाछे श्रेष्ट बन बनायक । अरु भूमिसुत को गुन जो सो कर के तू ने लिया है याते निदरना अलंकार लच्छन । चौपाई-जो सो आन आन गुन ठानो। तहां निंदरन सुकवि बषानो ।। निदरसन पद श्लेष है। टिप्पणी-सरदार कवि के अर्थ और मूल में कुछ घट बढ़ है अतएव नीचे लिख दिया है। मानि अजहु छाडो मान । तीन बिब दधि सुत उतारत राम दल जुत सान।। डेड ल कम लेत नाहीं प्रान प्रीतम प्रान । तूति की की रूप रात पति ब्रजन दूजी आन ॥ लगी फिरत पचास तित तब पास कर बर वान । भूमसुत जो लियो गुन सो निदरसन सुषहान । सूरदास सुजान पाइन परो कारो कान ॥ २१ ॥ ___ मानिन इति । हे मानिनी अबहू मान छोडो। तीन विब कहै छबि दधिसुत चंद । उतारत है राम दल रिछ तारा जुत तडका डेडललते तिल भर कल नाहीं लेत प्रान प्रीतम के प्रान । तति की की छकी है रूपरत की पति मरे है बज में दूसरी नाहीं । पचास तित सोति लगी फिरत है तेरे पाछे श्रेष्ठ बन बनाइ के। भूमसुत वृक्ष को गुन अचल तूने लियो है । सनमुष हान निदर के । देष अबे कान पाइ परै है । नाइका लछन पूर्ववत् । अरु भूमसुत को गुन मंगल का