[२१६ ] कवित्त बनाए हुए हैं हम ने किसी तवारीख में लिखा नहीं देखा कि बादशाह अकबर ने प्रवीन को बोलाया केवल विदित है कि अकबर ने प्रवीन की प्रवीनताई सुनी दरबार में हाजिर होने का हुकुम दिया तो प्रवीन राय ने प्रथम राजा इंद्रजीत की सभा में जाय ए. तीनि कूट कवित्त पढ़े (आई हों बूझन मंत्र) तेहि पीछे जब प्रवीन सभा में बादशाह के गई तो बादशाह से प्रश्नोत्तर हुए। बादशाह-युवन चलत तिय देह ते, चटकि चलत किहि हेतु । प्रवीन-मनमथ.वारि मसाल को, सैंति सिंहारो लेतु बादशाह-ऊंचे है सुर बस किये, सम लै नर बस कीन। प्रवीन--अब पताल बस करन को, कि पयानो कीन ॥२॥ इस्के पीछे जब प्रवीन ने यह दोहा पढ़ा। बिनती राय भवीन की, सुनिये शाह सुजान। झूठी पतरी भषत हैं, बारी बायस स्वान ॥ १ ॥ तव बादशाह ने विदाई दई औ प्रवीन इंद्रजीत के पास आई। (१००) भगवानदास निरंजनी भृत्यहरि सत कवितों में भाषा किया है। हुनः भगवानदास मथुरा निवासी सं० १५९० राग सागरोदभव में इन के पद हैं। १०१) मनोहर कवि ( राजा मनोहरदास ) कछवाहा सं० १५९२ ए महाराज अकबर शाह के मुसाहिब फारसी संस्कृत भाषा के महान् कवि थे फारसी में अपना नाम ( तौसनी) करि कै वर्णन करते थे। (१०२) परमानंद दास ब्रजबासी वल्लभाचार्य के शिष्य सं० १६०१ इनके पद रागसागरोद्भव में बहुत हैं औ इनकी गिनती अष्टछाप में है। (१०३) नवीनकवि बहुत ही सुंदर कवित्त शृंगार रस के हैं। (१०४) मानिकचंद कवि सं० १६०८ राग सारारोद्भध में इन के पद हैं। (१०५) निहाल प्राचीन सं० १६३५ . (१०६) मुकुंद सिंह हाड़ा महाराजै कोटा सं० १६३५ ए महाराजा शाहजहां बादशाह के बड़े सहायक औ कविताई में महा निपुण कवि- कोविदों के चाहक थे। (१०७) मुबारक सैयदमुबारक अली बिलग्रामी सं० १६४० इन की काव्य तौ विदित है इन का ग्रंथ कोई हम ने नहीं पाया कवित्त सैकरों हमारे पुस्तकालय में है। (१०८) वीरवर (बीए कायस्थ दिल्ली निवासी) सं० १७७७ ए महान
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