। २०९ । (४४) परसिद्ध कवि प्राचीन सं० १५९० ए महान कवीश्वर खानखानाके इहां थे। (४५) बिट्ठल बिपुल २ गोकुलस्थ श्री स्वामी हरिदास के शिष्य १५८० इन के पद राग सागरोद्भव में हैं ए महाराज मधुबन में बहुधा रहा करते थे। . (४६) रहीम कवि ए रहीम कवि, खानखाना के सेवाइ दूसरे रहीम हैं कविता इनकी सरस है काव्यनिर्णय में दास कवि ने इन का नाम एक कवित्त में लिखा है परंतु दोनों रहीम अर्थात् अबदुलरहीमखानखाना और इन रहीम की फुटकर काव्य का भिन्न भिन्न करना कठिन है । कवित- सूर केशौ मंडन बिहारी कालिदास ब्रह्म चिंतामणि मतिराम भूषण सो जानिए । नीलकंठ नीलाधर निपटि नेवाज निधि नीलकंठ मिश्र सुखदेव देव मानिये ॥ आलम रहीम खानखाना रसलीन वली सुंदर अनेक गन गनती वखानिए । ब्रजभाषा हेत ब्रज सब कीन अनुमान एते एते कविन की वानी हूं ते जानिये ॥१॥ (४७) अमरसिंह हाड़ा योधपुर के राजा सं० १६२१ ए महाराज अमर सिंह श्रीहाडावंशावतंस सूरसिंह के पौत्र हैं जिन सूरसिंह ने छः लाख रुपया एक दिन में छः कवि लोगों को इनाम दिया था औ जिन के पिता गजसिंह ने राजपुताने के कषिलोगों को धनाधीश कर दिया था राजा अमरसिंह की तारीफ़ में जो बनवारी कवि ने यह कवित्त कहा है कि (हाथ की बड़ाई की बड़ाई जमघर की) सो इस की बाबत टाड साहेब की किताब टाडराजिस्तान से हम कछु लिखते हैं प्रगट हो कि राजा अमरसिंह हाड़ा महागुगमाहक औ साहित्यशास्त्र के बड़े कदरदान औ खुद भी महाकवि थे इन्ही महाराजा ने पृथीराजरायसा चंद कवि कृत को सारे राजपुताने में तलास कराय ६९ उनहत्तर खंड तक जमा किया जो अब सारे राजपुताने मे बड़े बड़े पुस्तकालयों में मौजूद हैं शाह- जहां बादशाह के इहां अपराउँह का मनसब तीन हज़ारी था जो कि अमरसिंह बहुधा सैर शिकार में रहा करते थे इसलिए एक दफे शाह- जहां ने नाराज है कछु जुरवाना किया औ सलावतिखां बखशी उल्यु मालिक को जुरमाना वसूल करने को नियत किया अमरसिंह महा क्रोधामि से प्रज्वलित दरवार में आया पहिले एक खंजर से सलावतिखां का काम तमाम किया पीछे शाहजहां पर भी तलवार आवदार झारी तलवार
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