। २० । अरि हित पेितु सुत बंधु धारत कौन जियो री ॥ सूर स्याम हित अरध फट्यौ कहुं कैसे जात सियोरी उक्त सषी की नाइका प्रति के राधे ते ने मान काहे कियो । धन हर चोर ताको हित उंधकार दिपु दीप सुत काजर नितन नयनन में काहे न दियो । लाजल ना लछमी पात मा जनज बलराम बाला रोहिनो ताके भानुथान बारहो जातो ताको पुत्र मुकता ताले लियो हीन । मा लक्षमी पितु समुद्र अरि कुंभन हित राम मिल दसरथ सुन रिपुसूदन बंधु छन के न जीय में धरो है ॥ पारबती पितु परवत असतेशेतन अचल सभा व लिया है यही वस्तु दोहुन में हैं। सरस्पाम हित तपी कही जानामा फले अन्न को तीस के यामे परवत तन को एका घरमा अरू स्याम कोहि आकास की एकता बाक ते सामान्य कियो लाते तवस्तोपा । मानना नाइका लच्छन । दोन -----सो प्रतवस्तोपमः काहै लाश दुवात्य समान ॥ बाबू परमेश्वर सिंह इस पद का निम्न लिखित अर्थ करते हैं । भूसुत, अकुर । त्रु, मूस, नाथ, गणेश, हित, राम, पिता, दशरथ, त्रिया, वे कई, प्रिय, कलह, और पूर्ववत् । अथवा सरमुक्त, अकुर, शत्रु, पक्षी, नाथ, गरुड, हित, राम, पिता, दशरथ, शेन पूर्ववत् । अथवा भूमिसुत, आग, शत्रु, पानी, नाथ, सम, हित, राम, पिता, दशरथ, स्त्री, केकाई, प्रिय, कल ह शेष पूर्ववत् । अथवा भूमिसुत, दिगक, शत्रु, तितिर, नाथ, गरुड़, हित, राम, पितु, दशरथ, शेष पूर्ववत् । Fa Sid नाच तिमालकारन हित मानी कहो हमारो हो ही प्रतिधतिबा फुध कहि घजडू पेग सिधारी। तीन दोहग पांच सातकगति सतिवंत बिचारो॥दोडू एक करि अंतहीन मोहि सो दो बेर विचारो। प्रथम डार उपमान कहा मुष Seedscam
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