[ २०७ । नोचेब्रूहि कदापि मानय पुनर्नामींशी भूमिका ॥१॥ शृङ्गार सोरठा-भाषा। पलटि चली मुसक्याय, दुति रहीम उजियाय अति । बाती सी उसकाय, मानौ दीनी दीप की ॥१॥ गई आगि उर लाइ, आगि लेन आई जुतिय । .... लागी नहीं बुझाय, भभकि भभकि बरि बरि उठै ॥२॥..... नीति, दोहा-खीरा शिर धरि काटिये, मलिये निमक लगाय।... . करुये मुख को चाहिये, रहिमन यही सजाय ॥ १ ॥ फारसी। andinijit on Is as painly traint as pla.imilai_G Camsin yotcomdhantyagyasa yasipl virils kiladki एक दिन खानखाना ने यह आधा दोहा बनाया- " तारायन शशि रैन प्रति, सूर होहिं ससि गैन । ... औ दूसरा चरण नहीं बनाइसके रोज रात्रि को यह आधा दोहां पढ़ा करते थे दिल्ली में एक खत्रानी ने यह हाल सुनि आधा चरण बनाय बहुत इनाम पाया। सदपि अंधेरो हे सखी, पीव न देखे नैन ॥१॥ (३१) जगनकवि सं० १६५२ शृङ्गाररस में कवित्त चोखे हैं। (३२) ऊधोराम कवि सं० १६१० इन की कविता कालीदास जू ने अपने हजारा में लिखी है। (३३) कमाल कवि (कवीर के पुत्र) कायस्थ सं० १६२२ इनकी कविता कालीदास ने हजारा लिखी है। (३४) जमालउदीन पिहानीवाल सं० १६२५ कवि अच्छे थे। (३५) जगनद कवि बृंदावनवासी सं० १६५८ इनके कवित्त हजारा में हैं। (३७, जमाल सं० १६०२ ए कवि गूढ़ कूट में बहुत निपुण थे इन के दोहा बहुत सुंदर हैं। (३८) जलालउद्दीन कवि सं० १६१५ हजारा में इन के कवित्त हैं। (३९) कल्याणदास बृजवासी कृष्णदास पय अहारी के शिष्य सं० १६.७ इन के पद रागसागरोद्धव में हैं । पुनः कल्यान सिंह भट्ट एक है। (४०) फैजी शेख अबल फैज नागौरी शेख मुवारक के पुत्र सं० १५०८
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