दोहा--तुम्है न ऐसी चाहिये, छत्रसाल महराज । जहं भगवत गीता पढ़े, तई कवि पढ़े निवाज ॥१॥ निवाज ३ ब्राह्मण बुंदेलखंडी सं० १८०१ ये कवि भगवंत राइ । खींची गाजीपुर वाले के इहां थे। (१३) सेनापति कवि छंदावन बासी १६८० ए महाराज ट्रंदावन में क्षेत्र सन्यास लै सारी बैस उहा ही व्यतीत किया काव्य में इनकी प्रशंसा हम कहां तक करें अपने सानुय के भाम थे काव्य कल्पद्रुम इन का ग्रंथ बहुत ही सुंदर है हजारा में इन के बहुत कवित्त हैं। (१४) सुखदेव मिश्र कंपिला वासी १७२८ ए कवि भाषा साहित्य के आचार्यों में गिने जाते हैं प्रथम राजा अर्जुन सिंह के पुत्र राजाराज सिंह गौर के इहां जाय कविराज की पदवी पाय वृत्त्यविचार नाम पिंगल सब पिंगलों में उत्तम ग्रंथ को रचा तत्पश्चात् राजा हिम्मति सिंह बंधल- गोती अमेठी के इहां आय छेदविचार नाम पिंगल बनाया फिरि नबाब काजिलअली खां मंत्री औरंगजेब बादशाह के नाम भापासाहित्य में फाजिलअलीप्रकाश नाम ग्रंथ महा अद्भुत रचाए तीनौ ग्रंथों के सेवाय हम ने कहीं लिखा देखा है कि अध्यात्मप्रकाश १ दशरथराय २ ए दो ग्रंथ और भी इन्ही महाराज के किए हुए हैं। ... सुखदेव मिश्र कवि २ दौलतिपुर जिले रायबरेली वाले । १८०३ एक महाराज महान कवि बैसवारे में हो गए हैं राव मरदन सिंह बैस डोंडियाखेरे के इहां थे और उन्हीं के नाम रसार्णव नाम ग्रंथ नायका भेद में बहुत सुंदर बनाया है शंभुनाथ इत्यादि कवि इन्हीं के शिष्य थे। _ सुखदेव कवि ३ अंतरयेदि वाले । १७९१ ए कवि महाराजै भग- वंत राय खीची असोथर वाले के इहां से कछु आश्चर्य नहीं है कि ए महाराज सुखदेव मिश्र दौलतिपुर वाले न होवें। (१५) देव कवि प्राचीन देवदत्तं ब्राह्मण समानेगांव जिले मैनपुरी के निवासी सं० १६६१ ये महाराज अद्वितीय अपने समय के भाम मम्मट की समान भाषा काव्य के आचार्य हो गये हैं शब्दों में ऐसी समाई कहां है जिन में इन की प्रशंसा की जाय इन क बनाये ग्रंथों की संख्या आज तक ठीक ७२ हम को मालूम हुई है तिन में केवल ११ ग्रंथों के नाम जो हम को मालूम है लिखे जाते हैं जिनमें अक्सर हम ने भी देखा है।
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