पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२

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सूरदास के दृष्टिकूट सटीक।


राधे कियो कौन सुभाव। प्रानपति बेदन विभूषित सुंनगुन चितचाव ॥टेक॥ मानुबंसी रस सुधाग्रह ते न निकसन पाव। रजनिचरगुन जानि दधिसुत धरन रिपु हित चाव॥ रजनिचरहित भक्त मो तन सरस दीपत आव। सूरस्याम सुजान सुकिया अघट उपमा दाव ॥१॥

टीका—राधे इति यह पद विषे स्वकिया नाइका पूरनउपमा अलंकार सारोपा लच्छना है।

पकिया लच्छन—निज पति की अनुरागिनि होई।

स्वकिया ताहि है सब कोई॥

प्रानपति के वेदन श्रवनन विभूषन है लुन आकास ताको गुन शब्द अनुवंश प्रिथु तिन का रस हांस सुधाग्रह अधरन में रहत है। रजनिचरगुन आप उदधिसुत चंद घर महादेव तिन को रिपु काम मात्र जानत है काहे को नाम मनसिज है जो मन में रहै सो जानै। रजनिचरहित महादेव उनको भष धतूर नाम कनक कनक नाम सुवरन सो है तनु कनक उपमा न उपमेय से वाचिक दीपल घरम ताते पूरन उपमा अलंकार ताको लच्छन। सोरठा—उपमेयो उपमान, धर्म सहित वाचक जहां।

पूरनउपमा जान, कहत सकल कवि मत समुझ॥
अरु बराबरी के संबंध ते सारोपा लच्छन।
टिप्पणी—सरदार कवि ने अपने टीका में इस पद को पाटांतर भी किया

और काल अर्थ में भी बदला है वह ज्यों का त्यों नीचे लिखा है।