पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१९५

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[ १९४] तक रहे तेही पीछे महाराज शिवराज सुलंकी सतारागढ़ वाले के इहाँ जाय रड़ा मान पाया औ जब यह कवित्त भूषण जीने पढ़ा (इंद्र निमी जंभ पर) तव शिवराज ने पांच हाथी औ २५ हजार रुपिया इनाम दिया इसी प्रकार से भूषण ने बहुत बार बहुत २ रूपियां हाथी घोड़ा पालकी इत्यादि दान में पाये ऐसे शिवराज के कवित्त बनाए हैं जिनकी बराबर किसी कवि ने वीर यश नहीं बनाये पाया निदान जब भूषण अपने घर को चले तो परना होकर राजा छत्रसाल से मिले छत्रसाल ने बिचारा अब तो शिवराज ने इन को ऐसा कुछ धन धान्य दिया है कि हम उस्का दशवां हिस्सा भी नहीं दे सकते ऐसा शोच विचार करि चलते समय भूषण की पालकी का बांस अपने कंधे पर धरि लिया ब्राह्मण कोमल हृदय तो होते ही हैं भूषण जी बहुत प्रसन्न है यह कवित्त पढ़ा। साहू को सराही की सराहौं छत्रसाल को । धौ दूसरा यह कवित बनाया। तेरी बरछीने बरछीने हैं खलन के। औ दो दोहा बनाय' छत्रसालको दै घर में आए- दोहा---एक हाड़ा बूंदी धनी , मरद महेवा बाल । सालत नौरंगजेब के , ए दोनों छत्रसाल ॥१॥ ए देखौ छत्तापत्ता , ए देखौ छत्र साल। ए दिल्ली की ढाल ए, दिल्ली ढाहनवाल ॥२॥ भूषण जी थोड़े दिन घर में रहि बहुत देशांतरों मे धूमि धूमि रजवारों में शिवराज का यश प्रगट करते रहे जब कुमाऊं में जाय राजा कुमाऊं के यश में यह कवित्त पढ़ा ( उलदत्त मद अनुमद ज्यों जलधिजल)।

तब राजा ने शोचा कि ये कुछ दान लेने आए हैं औ हमने जो

सुना था कि शिवराज ने लाखों रुपिया इन को दिया सो सब झूठ है ऐसा बिचारि हाथी घोड़े मुद्रा बहुत कुछ भूषण के आगे किया भूषण जी बोले इस की अब भूख नहीं हम इसलिए इहां आए थे कि देखें शिवराज का यश इहां तक फैला है या नहीं-इनके बनाए हुए ग्रंथ शिव- राज भूषण १ भूषणहजारा २. भूषणउल्लास ३ दूषणउल्लास ४ ए चारि ग्रंथ सुने जाते हैं कालिदास जूने अपने ग्रंथ हजारा की आदि में ७० कवित्त नवरस के इन्हीं महाराज के बनाए हुए लिखे हैं। (३) बिहारीलाल चौबे ब्रजबाशी संवत् १६०२ हुए से कवि जयसिंह कछ-