पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१९१

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राग बिहागरो। भरोसो दृढ इन चरनन केरो॥ श्रीबल्लभनख चंद छटा बिनु सब जग माझि अंधेरो ॥१॥ साधन और नहीं या कलि में जासों होत निबेरो। सूर कहा कहे दुर्बिधि आंधरो बिना मोल को चेरो ॥३॥ यह पद कद्यौ पाछे सूरदास जी को मूर्छा आई तब श्री गुसाई जी कहें जो सूरदास जी चित की वृति कहां है तब सूरदास जी ने एक पद और कह्यौ सो पद ॥ राग बिहागरो। . - बलि बलि बलि हो कुमरि राधिका नंदसुवन जासों रति मानी । वे अति चतुर तुम चतुर सिरोमनि प्रीत करी कैसे होत है छानी ॥१॥ वे जु धरत तन कनक पीतपट सो तो सब तेरी गति ठानी । तें पुनि श्याम सहज वे सोभा अंवर मिस अपने उर आनी ॥२॥ पुलकित अंग अबहीं है आयौ निरखि देखि निज देह सियानी ॥ सूरसुजान के बूझे प्रेम प्रकास भयौ बिहसानी ॥३॥ यह पद कयौ इतनो कहि श्री सूरदास जी के चित श्री ठाकुर जी को श्री मुख तामें करुणा रस के भरे नेत्र देखे तब श्री गुसाई जी पूछौ जो सूरदास जी नेत्र की बृति कहां है तब सूरदास जी ने एक पद और कह्यौ सो पद ॥ ___राग बिहागरो। खजन नैन रूप रस माते ॥ अति से चारु चपल अनियारे पल पिंजरा न समाते ॥१॥ चल चल जात निकट श्रवनन के उलट पलट ताटंक फंदात ॥ सूरदास अंजन गुन अटके नातर अब उडिजाते ॥२॥ इतनों कहत ही सूरदास जी लें या शरीर को त्याग.कियो सो भग- वद लीला में प्राप्ति भये पाछे श्री गुसांई जी सब सेवकन सहित श्री गोबर्द्धन आये तातें सूरदास जी श्री आचार्य जी महाप्रभून के ऐसे कपा पात्र भंगवदीय है ताते (सो) इन की वार्ता को पार नाही तातें इन की बार्ता कहांताई लिखिये। 'सीधीहिन्दी-पहिला भाग में गया गवन्मेन्ट स्कूल के पंडित बल- देव मिश्र ने लिखा है कि-'सूरदास का घर कृष्णाबेना गांव में देवशर्मा ब्राह्मण का बेटा बिलमङ्गल पांडे इनका नाम था । पहले इनकी चाल-