को जो महाराज सूरदास जी तो आज परासाला का आरा जात दस हैं तब श्री गुसाई जी ने जान्यौं जो भगवद इच्छा ते अवसान समें हैं तातें सूरदास जी परासोली गये हैं तब श्री गुसाई जी ने अपने सेवकन सों को जो पुष्टिमार्ग को जहाज जात है जाको कछू लेनो होय सो लेउ और जो भगवद इच्छा ते राजभोग आरती पाईं रहत है तो मैंहूं आवत हो पाछे श्री गुसांई जी बेरबेर सूरदास जी पी खबरि मंगायौ करें जो आवै सोई कहे जो महाराज सुरदास जी तो अचेत हैं कछु । बोलत नाहीं ऐसें करत श्रीनाथ जी के राजभोग को समय भयो सो राज भोग आरती करिके श्री गुसाईजी गिरिराज ते नीचे उतरे सो आप परासोली पधारे भीतर के सेवक रामदास जी प्रभृत और कुंभनदास जी और श्री गुसांई जी के सेवक गोविंद स्वामी चत्रभुजदास प्रभृत और सब श्री गुसांई जी के साथ आये सो आवत ही सूरदास जी सो श्री गुसाई जी ने पूछौ जो सूरदास जी कैसे हो तब सूरदास जी ने श्री गुसाई जी को दंडौत करिके कयौ जो महाराज आये हो महाराज की बाट देखत हुतो यह कहिके सूरदास जी ने एक पद कयौ सो पद ॥ राग सारंग। देखौ देखौ हरि जूको एक सुभाय ॥अति गंभीर उदार उदधि प्रभु जानि सिरोमनि राय ॥१॥राई जितनी सेवा को फल मानत मेरु समान। समझिदास अपराध सिंधु सम •दन एको जान ॥२॥ वदन प्रसन्न कमल पद सनमुख दीखत ही है ऐसें । ऐसे बिमुखहु भये छपा व मुख की जब देखौ तव तैसे ॥ ३ ॥ भक्त विरह करत करुणामय डोस्त पाईं लागै ॥ सूरदास ऐसे प्रयु को कत दीजै पीठ अभागे ॥४॥ ___यह पद सूरदास जी ने कहौ सो मुनि श्री गुसाईजी बहुत प्रसन्न भये और कह्यौ जो ऐसे दैन्य प्रभू अपने सेवकन कों देहि या दैन्य के पात्र एही हैं तब वा बेर श्री गुसाई जी के पास गाडे हुते और चत्रभुज दास हू ठाडे हुते तब चत्रभुजदास ने कहौ जो सूरदास जी ने बहुत अगवद जस वर्णन कियौ परि श्री अचार्य जी महाभू न को वर्णन नाहीं कियौ तब यह वचन सुनि के सूरदास जी बोले जो में तो सब श्री आचार्य जी महा- प्रभून कोही जस वर्णन किया है कळू न्यारो देदूं तो न्यारो करूं परि तेरे साथ कहत हों या भांति कहिके सूरदास जी ने एक पद कहो सो पद।
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