सो वा चौपड खेल में ऐसे लीन हो जो कोऊ आवते जाते की सुधि नाही ऐसे खेल में मग्न है सो देख के सूरदास जी के संग भगवदीय है तिन सों सूरदास जी ने कह्यौ जो देखो वह पानी कैसो अपनों जमारो खोवत है भगवान ने तो मनुष्य देह दीनी है सो तो अपनी सेवा भजन के लिये दीनी है सो तौ या देह सौं हाड कूटत है यामें यह लौकिक सिद्ध नाही सो काहे ते जो या लोक में तौ अपजस और परलोक में भगवान ते वहि- मुखता तातें श्री ठाकुर जी ने इन को मनुष्य देह दीनी है तिनकों चौपड ऐसी खेलनी चाहिये सो ता समें एक पद सूरदास जी ने अपने संगिन सों कह्यौ सो पद। राग केदारो।. मन तू समझ सोच बिचार । भक्ति बिन भगवान दुर्लभ कहत निगम पुकार ॥ १॥ साधु संगति डार पासा फेर रसना सार । दांव अब के पो पूरो उतरि पहिली पार ॥२॥बाक सत्रे सुनि अठारे पंचही कौं मार। दूर तें तजि तीन काने चमकि चोंकि बिचार ॥ ३ ॥ काम क्रोध जंजाल भूल्यौ ठग्यो ठगनी नार । सूर हरि के पद भजन बिन चल्यौ दोऊ कर झार ॥४॥ ___ यह पद सूरदास जी ने अपने संग के भगवदीयन सों कह्यौ सो या पद में सूरदास जी ने कहा कह्यो मन तू समझ सोच विचार। ये तीनों वस्तु चोपड में चाहिये सोई तीनों वस्तु भगवान के भजन में चहिये काहे ते जो समझ न होय तौ श्रवण कहा करे गौ ताते पहिलें तौ समझ चाहिये और सोच कहिये चिंता सो भगवान के प्राप्ति की चिंता न होय तौ संसार ऊपर वैराग्य कैसे आवै तातें सोच कहिये और विचार जो या जीव कौं विचार ही नहीं तो संग दुसंग में कहा करैगो तातें विचार चहिये सो ये तीनों वस्तु होय तो भगवदीय होय तातें ये तीनों वस्तु भगवदीय कों अबश्य चाहिये और चौपड़ में हूं तीनों वस्तु चाहिये समझ कहें गनबो न आवे तौ गोट केसें चले और सोच अगम जो मेरें यह दाव पड़े तो यह गोट चलूं विचार जो वाही में तन मन जो ये तीनों वस्तु होंय तौ चौपड़ खेली जाय सो वे सूरदास जी श्री आचार्य जी महा प्रभून के ऐसे परम भगवदीय है। वार्ता प्रसग ॥४॥ बहुर श्री मूरदास जी श्रीनाथ जी द्वार आय के बहुत दिन ताई
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