जो योको परमेश्वर ने राज दियौ है लो सब गुनीजन मेरो जस वत हैं तातें तुमई कछु गावो तब सूरदास जी ने देशाधिपति के आगे कीर्तन गायौ सो पद। राग विलापल । मना रे तू करि माधौ सौ प्रीति । यह पद देशाधिपति के आगे संपूरण करि के सूरदास जी ने गायौ । सो यह पद कैसो है जो या पद को अहनिस ध्यान रहे तो भगवद अनग्रह की सदा साति रहे और संसार ते सदा वैराग्य रहे और कसंग को सदा भय रहे और भगवदीय के संग की सदा चाह रहे और श्री ठाकुर जी के चरणाविद ऊपर सदा स्नेह रहे देसाधिक ऊपर आशक्ति न होय ऐसो पद देसाधिपतिको सुनायो सो सुनि के देशाधिपति बहुत प्रसन्न भयौ और कही जो सूरदास जी मोको परमेश्वर ने राज दीनों है सो जब गुनी जन मेरो जस गावत है ताते मेरो जस कछु गावो तब सूरदास जी में यह पदमायो सो पद। राग केदारा। नाहि न रह्यो मन में ठौर। ... यह पद संपूर्ण करि के गायौ सो सुनि के देशाधिपति अकबर पातशाह अपने मन में विचासौ जो ये मेरी जस काहे को गामेंगे जो इन को मो कछु बात को लालच होय तो गामें ये तो परमेश्वर के जन हैं और सूरदास जी ने या पद के अंत में गायो हो जो सूर ऐसे दर्श कों ए मरत लोचन प्यास यह मायो हो सो देसाधिपति ने पूछौ जो सूरदास जी तुम्हारे लोचन तौ देखियत नाहीं सो प्यासे कैसे मरत हैं और विन देखे तुम उपमा को देत हो सो तुम कैसे देत हौ तब सूरदास जी कच्छ बोले नाही तब फेर देखाधिपति बोल्यो जो इन के लोवन हैं सो तो परमेश्वर के पास हैं सो उहां देखत हैं सो बरनन करत हैं तब देशाधिपति ने सूरदास जी के समाधान की मन में विचारी जो इन कों कछू दियौ चाहिये परि यह तो भगवदीय हैं इन कों काहू वात की इच्छा नाहीं पाऊँ सूरदास जी देसाधिपति सों विदा होय के श्री नाथ जी द्वार आये। वार्ता प्रसंग ॥३॥ एक समें सूरदास जी मार्ग में चले जा हैं सो को चौपड खेलते हुते
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