सबहि न ले पायन तर परिहों यही हमारी भेट । ऐसी कितनीक वनाऊं पानपति सुमिरन है भयो आडौ। अब की बेर निवार लेउ प्रभु सूरपतित का टाडों। फिर दूसरो और पद गायौ सो पद। राग धनाश्री। प्रभु में सब पतितन को टीकौ। और पतित सब धौस चार के मैं तौ जन्मत ही कौ ॥१॥ बधिक अजामिल गनिका तारी और पूतनाही को। मोहि छांडि तुम और उधारे मिटे शूल कैसें जी कौ ॥२॥ कोऊ न सम- रथ सेव करन को खेच कहत हौं लीकौ। मरियत लाज सूरपतितन में कहत सबन में नीको ॥३॥ ऐसो पद श्री आचार्य जी महाप्रभून के आगे सूरदास जी ने गायौ सो सुनि के श्री अचार्य जी महाप्रभून नैं कह्यौ जो सूर है मैं ऐसो काहे कों घिघियात है कछु भगवद लीला वर्णन करि तब सूरदास ने कह्यौ जो महाराज हों तो समझत नाहीं तब श्री आचार्य जी महाप्रभून ने कह्यो जो जा स्नान करि आउ हम तोकों समझायेंगे तब सूरदास जी स्नान करि आये तब श्री महाप्रभू जी ने प्रथम सूरदास को नाम सुनायौ पाछे सम- र्पण करिवायौ और दशमस्कंध की अनुक्रमणिका कही सो तातें सब दोष दूर भये ताते सूरदास जी को नवधा भक्ति सिद्ध भई तब सूरदास जी ने भगवद लीला वर्णन करी अनुक्रमणिका ते संपूर्ण लीला फुरी सो क्यों जानिये सो दशमस्कंध की सुबोधनी जी में मंगलाचरण को प्रथम कारका किये हैं सो यह श्लोक सूरदास जी ने कह्यौ सो-श्लोक । नमामि हृदये शेषे लीला क्षराब्धि सायिनं । .. लक्ष्मी सहल लीलामी सेव्य मानं कलानिधि ॥ १ ॥ और ताही समें श्री महाप्रभून के सन्निधि पद किये सो पद । राग बिलावल । चकई री चलि चरन सरोवरि जहां न प्रेम बियोग । यह पद संपूरण करि के सूरदास जी ने गायो सो यह पद दशमस्कंध के मंगलाचरण की कारका के अनुसार कियौ सो यामें कह्यौ है जो तहां श्री सहस्र सहित नित क्रीडत शोभित सूरदास ने या भांति पद किये तातें जानी जो सूरदास को संपूर्ण सुबोधनी स्फुरी सो श्री आचार्य जी महाप्रभून ने जान्यौ जो लीला को अभ्यास भयौ पाछे सूरदास जी ने नंद महोत्सव कियौ सो श्री आचार्य जी महाप्रभून के आगें गायो सो पद ।
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