पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१७०

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[ १६९ ] इहां यह कवित्त अरजी के तौर पर दिया है। जैन खां जुनारदार मारे एक नौर के । जुनारदार फारसी मे जनेउ रखनेवाले का नाम है लेकिन खास ब्राह्मण ही को जुनारदार कहते हैं खैर जो हो इम को इस बात में बहुत लिखने से कटु मतलब नहीं गंग जी महान कवि थे राजा वीरवर ने गंग को इस छप्पै में ( भ्रमर भ्रमत ) एक लक्ष रूपिया इनाम दिया इसी प्रकार से अकबर, जहांगीर, बीरवर, खानखाना, मान सिंह सवाई इत्यादि सभों न गंग को बहुत दान मान दिया है। भक्त विनोद-कवि मियांसिंह कृत से । दोहा-करन विमल मनहरन तम , दमन त्रिवध दुख दोष । भक्ति महातम करहुं कल , कथन ललितं प्रदमोष ॥२॥ नासन कुमति कृतांत भय , भासन भानु प्रबोध । सुमति बिकासन भक्त जन , दलन मदनमद कोष ॥२॥ चौपाई। कृष्ण देव जब जनन उबारा । मथुरा लीन ललित अवतारा। कीए कृपाल चरित जस चारू । सो मनहरन बिदित संसारू ॥१॥ तब जादव इक भक्त प्रवाना । कृष्ण सरोज चरन मन लीना । सुर नयन बर बंस उजागर । उपज्यो भक्त सृष्ट गुन सागर ॥२॥ सखा पुनीत मीत ब्रत धारी । मन बच करम कृष्ण हितकारी। जब मथुरा तजि करत पयाना । द्वारावती आय भगवाना ॥३॥ ते किमि चंचरीक वड भागी । सकहिं सरोज चरन प्रभु त्यागी । भक्ति प्रेम कल नवल उमंगा । आयो दीनदयाल कर संगा ॥४॥ जद्यपि आनंद भवन प्रसाद । तांके तहां सुलभ सब साधू । 4 निवास बंदावन चारू । बिहरन कुंज गलिन मनहारू ॥५॥ कृष्ण संग नित नवल बिलासा । सोन पलक कल विसरत तासा । तन मथुरा वृंदावन मनुआं । लग्यो रहत निसि दिवस अननुआं॥६॥ करि स्मरन कल कुंजन सोभा । होत प्रबल जिय जादव छोभा । प्रभु सन वारबार अस बरनी । नम्रत बिनय दिवस निसि करनी ॥७॥ कपा निकेत जनन सुखदाई । तुव सनः कवन दिवस सुभ जाई ।