[ १६४ ] देत सन्देसे ॥ पांडो नाथ बेद कर पल्लव अलि पंकज रहे घेरो। एक सै साठि चरन है जिन को सोहरि हम सों फेरी॥ जननी खान बहन पसुभाषा सारंग रिपु के खादे । ई दो नाम मिलत मोहि टुरजन ताते बिरह बिखादे ॥ सुरगुरुअरि बाहन अरि ता पति ता अरि यह तन तावत । कनकपटनपति तासु अनुजहित सुर अजह नहीं आवत ॥ ५३॥ . कमल नैन श्रीकृष्ण परदेश में हैं, ऋतु राज चइत सो चित में आ गये तेहि से विदेश चले गये, हर महादेव हित चन्द्रमा रिपु राहु बाहन भेंडा भोजन पत्ता सो पत्र नहीं पठाते हैं। पांडव ५ नाथ ९ वेद ४ कर दोनों हाथ पल्लौ दोनों हाथ की १० अंगुली मिलाने से ३० हुआ सो तीसो दिन अलि भौंरा पंकज कमल सो. भँवरा कमल को तीसो दिन घेरे रहता है, इस से अभिप्राय यह है कि भंवरा तो सुख के लिये घेरे रहता है। एक सौ साठ चरण अर्थात् १६० पांव अर्थात् पाव सो १६० पावं का एक मन होता है सो श्रीकृष्ण ने हम से मन फेर लिया। जननी माता माता की बहन नाम बोली स्वान की भाषा सी लगती है, सारंग पच्छी रिपु बिलार बिलार के स्वादिष्ट दही सो यह दोनों (माता और दही) रिपु के समान मालूम होता है क्योंकि माता दही महने कहती है इस से बिरह बिखाद होता है । सुरगुरु बृहस्पति रिपु शुक्र बाहन बेंग रिपु साँप पति महादेव रिपु काम सो काम सता रहा है, कनकपटन लंकापति रावण भाई कुम्भकरण हित नींद सो सूरदास कहते हैं कि गोपियों को नींद नहीं आती है ॥ १३ ॥
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