पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१६३

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राजसुत नाम रडूनि दिन निरखत नोर बहोरी ॥ कुन्तीपतिपितुतातनारिधर ता अरि अंग दहोरी । घटसुतअरि- तनयापति सजनो नाहिं नेह निब- होरी ॥ जलरितु नाम जान अब लागे हरिभखि वचन गयोरी । मारुतसुत पति नन्द ग्रेह के कासे नेह निबहोरी॥ सैलसुतापति ता सुत वाहन बोली न जात सहोरी । सूरध्याम आवन के आसा संसा प्रान रहोरी ॥५१॥ माधो श्री कृष्ण सो प्रदेश में बिलमि गये, अमर देवता राजा इन्द्र सुत अर्जुन अर्थात् पारथ और पारथ के अर्थ पंथ सो पथ हेरते २ नीर बहा जाता है । कुन्ती पति पांडो पिता विचित्रविर्य और तात नाम पिता तिस के पिता सन्तनु ऋषि नारि गंगा गंगा के धारण करनेवाले. महादेव अरि काम सो अंगको दहे नाम जलाता है। घटसुत कुंमज. ऋषि अरि समुद्र तनया लक्ष्मी पति विष्णु सो लक्ष्यी से भी सनेह नहीं निवाहा । जल ऋतु बरसात सो अब बीत गया और हरि जो श्रीकृष्ण सो आने को कह गये थे सो नहीं आये। और मारुतसुत हनुमान पति रामचन्द्र सो नन्द ग्रेह के श्री कृष्ण उन से भी नेह नहीं निवहा । सैल सुता पार्वती पति महादेव पुत्र स्याम कात्तिक वाहन मयूर सो मयूर की बोली नहीं सही जाती सूरदास कहते हैं कि स्याम जो हैं श्रीकृष्ण सो उन की आने की आशा लगी है उसी से अब तक प्राण है ॥ ५० ॥ - सभे मिलि श्याम सन्देस सुनोरी । जो