पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१५९

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भीन ॥ गए नवकुंज कुसुमनि के पुंज अलि करें गुंज सुष हम देषि भई लव- लीन । षट उडगन षट मनिधर राजत चौबीस धात केहि चित्र कीन ॥ घट इंदु हादस पतंग मनो मधुप सनि षग चौअन माधुरी दस पीन। हादस बिंबाधर सो वान वै बज कन मानो घट दामिनि घट जलज हँसि दोन ॥ हादस धनुष हादसै विष्का मन मोहे न पटे चिबुक चिन्ह चित चीन । हादस व्याल अधोमुष झूलत मधु मानौ कंज दल सौ बीघगीन ॥ हादसै मनाल हादस कदली घंभ मानोवादस दारिम सुमन प्रबीन ॥ चौबीस चतुष्पद ससि सौ बीस मधुकर अंग अंग रस कंद नवीन । नील निले मिलि घटा विविधि दामिनी मनी षोडस शृंगार सोभित हरि हीन ॥ फिरि फिरि चक्र गगन मै अमी बतावत