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। १५१ । राधा बसन स्याम तन चोन्ही । सारंग बदन बिलास बिलोचन हरि सारंग जान रति कीन्ही ॥ सारंग वचन कहत सारंग सो सारंग रिपु दै राषत झीनी। सारंग पान कहत रिपु सारंग कहा कहत लिय छीनी ॥ सुधा पान कर कुच नीको बिधिरहो सेष फिर मुद्रादीन्ही। सूर सुदेस आहि रति नागर भुज आकर्ष बाम कर लीन्ही ॥ ३८॥ राधा को स्याम बसन लिये चीन्ही । सारंग राति के वचन सारंग अली सों कहत सारंग दीप रिपु पट ओट । सारंग कमल कर सारंग रिपु पट छीन लियो । अरु अधर पान कियो कुच मर्दन । आलिंगन मुद्रा कर बाम भुज में भरी ॥३८॥ ___राधे दधिसुत क्यों न दुरावत। हों जु कहत बृषभाननंदनी काहे को तू जीव सतावत। जलचर दुषो दषी वे मधुकर है पंछी टुष पावत। सारंग दुषी होत सारंग बिन तोहि दया नहिं आवत ॥ सारंगरिपु की नेक ओट कर ज्यौं सारंग सुष पावत । सूरदास सारंग