पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१३०

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। १२९ । वचन हरि सों कहै है। अरु सारंग कहै अमृत ऐसे वचन काहे नहीं भावत है। तो बिन नायक नैन ते नीरे बहावै है ॥ ११ ॥ राग नट। .. राधे हरिरिपु क्यों न दरावति। सैल- सुतापति तासु मुतापति ताके सुतहि मनावति॥ हरिवाहन सोभा यह ताकी कैसे धरे सुहावति । है अरू चारि छही बै बीते कहि क्यौं गहरु लगावति ॥ नौ अरु सात एजु तह तहँ सोभित ते तू कहि क्यौं दरावति । सूरदास प्रभु तुमरे मिलन कौं श्रीरंग रंग भरि आवति॥१२॥ राधे हरिरिपु इति । सपी की उक्ति हरि कहैं चंद्रमा को रिपु कमल

  • ताहि क्यों नहिं दुरावै है ॥ चंद बदन को पोलि के सैलसुता नदी तिन

को पति समुद्र ताकी सुता सीप ताको पति स्वाती को जल । ताको सुत मुकुता जाको अर्थ बिछोह ॥ ताहि मनावति है अथवा सैलसुतापति समुद्र सुतापति विष्णु सुत काम हरि जो है सूर्ज ताको वाहन अश्व ताकी सोभा घुघुट ताकौं धरि कैसे सुहावै है। दै अरु चारि छः छ बारह महूरत बीते अब क्यौं देर करै है ॥ नव सात सोरह सिंगार जिन अंगन माहिं सोभित होत है तिन्हैं क्यों छपा है ॥ १२ ॥ राग सारँग। राधे हरिरिपु क्यों न दरावति । सारंगसुतबाहन को सोभा सारंग सुतज बनावति ॥ सैलसुतापति ताके