रस अति अदभुत गत मातो ॥ सुत कसान सुत प्रबल भए मिल चार ओर ते आये । ते जिन जान घने तम के गज साजत सरस सवाये॥ आजु मोहि मैया बिचार के गैया ओर पठाई । निरबि- कार जहां सुर पहुंनत बात न चतुर बताई ॥११॥ (सुरभी इति) उक्ति नाइका की नाइक प्रति हे नंदनंदन सुरभी नाम गो नाम इंद्री ताके रस से रतो सुरभी गोरस सो का रते हो ग्रहमुनि सातएं सनि पिता सूर्य पुत्रिका जमुना ताको रस जो जल है सो महारस में मतवारो भयो है अर्थ जमुना बड़ी है कृसान सुत धूम ताके सुत मेघ जो प्रबल भए है चार ओर ते जो आए हैं सो नाहीं हैं जो सघन अंधकार के गज है आजु मोको माता ने विचार कर के गाई की ओर पठायो है निरविकार यह परम पहुंनत यह सुधापहुंनत अलंकार है । बचन बिदगधानाइका है घन को धरम मिटाइ तम के गज कहे ताते सुद्धापहुंनत बातन में मिलाप करन चाहत संकेत सुचित करत ताते बचन बिदगधा ताको लच्छन ।
- दोहा-धरम दुरो आरोप ते, सुद्धापहुंनत जान ।
- बचन चतुरई ते कहत, बाकविदगधा नाम ॥ १ ॥११॥ देषत हूं वृषभानदुलारी । नँदनँदन आवत ब्रजबीथिन भीर संग ले भारी॥ सिवानन लिखि चंद बिंदु दै कर निज कुचन मिलाए । भूषन स्वल्प क्रिया ते सुंदर सूरस्थाम समुझाए ॥१२॥