पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१२९

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कमल निहारे है सुमना जो है चमेली ताको सुत जो है तेल ताहि लै कमल मुष में लगाय धनपति कुबेर ताको धाम अलका सो अलक केस सँवारै है । अरु तरनि सूर्य ताके तात कश्यप ताकी स्त्री कद्रू ताके पुत्र पन्नग केस सँवारै है । कर कमल तें गाँठ लगावत अर्थ वेनी गूंधत है। अरु कमल नैन में कमल कर सों काजर देत है । अरु सारंग दीप ताको सत्रु पट पाहन मनी तिन सो गाँथि के ओढे है उर में हारावलि मेलै है। कर कमलन सों मानों इंदु जो चंद्रमा सोई है । हारावलि अरु पारस कुच तिन के ऊपर पहिरे है ॥ १० ॥ राग सोरठी । राधे हरिरिपु क्यों न छिपावति। मेर- सुतापति ताके पति सुत ताको क्यों न मनावति ॥ हरिवाहन ता वाहन उपमा सो तें धरे दृढावति। नव अरु सात बीस तोहि सोभित काहे गहरू लगावति ॥ सारंगवचन कह्यौ करि हरि को सारंगवचन निभावति । सूर- दास प्रभु दरस बिना तुव लोचन नीर बहावति ॥ ११ ॥ । राधे हरिरिषु इति । हरि सूर्य ताको रिपु तम जो है कोप ताहि काहे नहीं दूरि करै है । मेरुसुतापति महादेव ताके पति विष्णु ताके सुत प्रद्युम्न कहै काम ताहि काहे नहीं मनावै है । हरि वानर ताको बाहन वृक्ष तासु वाहन पृथ्वी ताकी बराबरी मान को धरि कै अथवा हरि- बाहन गरुड ताके वहावन पक्ष तू पक्षा धरि दिढावत । काहे कों दृढावे है नव सात सोरह शृंगार ते तोकोह बिस से लगे है । अरु सारंग वान ऐसे Vi. it