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गलबंधे हरि छवि पर जीवत रहत भिरे। सूर सुभट ज्यौं रन नहिं छांडत जब लौं धरनि गिरे ॥ ६ ॥ लोचन इति । उक्ति नाइका की सपी सों । हमारे लोचन लालच ते ना टरे हरि सारंग कहिये कुरंग सो. बीधे है । दधिसुत कहै चंद मुष चंद देषि को जरत हैं आगे सुगम ॥६॥ राग नट। लोचन लालची भये री। सारँगरिपु के रहत न रोके हदि सरूप गिधए री ॥ काजर कुलफ मेलि मै राषे पलक कपाट दये री। मिलि मन दूत पैज करि निकसे बहुरि स्याम पै दौरि गए री॥कै आधीन पंच ते न्यारे कुललज्या न नए री। सूरस्याम सुंदर रस अटके है मनो उहंडू छए री॥ ७॥ लोचन इति । हमारे लोचन लालची भर हैं। सारंग नाम दीपक ताको रिपु पट ताके रोके नाही रुके है। आगे सुगम ॥ ७॥ राग बिहागरो। - स्याम रंग नैना राचे रो । सारंगरिपु तें निकसि निलज भए परगट है कर नाचे री ॥ मुरली नाद सदंग मृदंगी अधर