पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१२३

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। १२२ ] छोडिए । किशले कहे पत्र कुलुम फूल ते दोनों कुंत वरछा सायक तीर समान अरु पवन पात्रक समान हैं दुमवल्ली अरु दीयर जे जुग दोय हैं । सो अनल जो आग्न सो जारि है और कहैं बउर ता रूपी जो वधिक सो चपरिकै पक्षी की वानी रूप अबाज करि है । अरु पुन पुन बसंत में जो बाजा बने है सोई जो राजि घोरा ता पर चडि कै विरह विभूति जो बढी है। तासो विरहिनी मानिनी जैहै । तिन के सीस के जेबार हैं जेऊ होगये हैं जटा अरु मुष जो है ससि तासों ससि सेपर अनुमान करो है। जौ इतने पर चलो तो वह निज करि सारि है । हे रसिक सिरोमान जो तुम न चलिहौ तौ वह कौन को पुकारि है ॥ ४ ॥ राग नट। रसना जुगल रसनिधि बोलि । कनकवेलि तमाल अरुझो सुभुज बंध अपोलि ॥ भंगुजथ सुधाकरनि मनो सघनम आवत जात। सुरसरी पर तरनि- तनया उमगि तटन समात ॥ कोकनद पर तरनि तांडव मीन घंजन संग। कीर तिल जे सिषर मिलि जुग मनो संगमरंग ॥ जलद ते तारा गिरत मनो परत पै निधि माहिं। जुग भुजंग प्रसन्न मुष हे कनघट लपटाहिं ॥ कनक संपुट कोकिला व बिबस वै दे दान । बिकच कंज अनारंगिन पर लसित करत