बिधि रंग धातु । है पकबिंब व कन एक जलज पर थात ॥ टीक एक चापचपल अति चिबुक माय बिकात । दुइ मृनाल मातुल उ दली पंभ बिन पात ॥ एक केहरि एक हंस गुपुत रहै तिनहि लग्यो यह गात । सूरदास प्रभु तुम्हरे मिलन कौं अति प्रातर अकुलात ॥३॥ • विराजत इति । सपी की उक्ति नाइका सों ताके अंग अंग में रति जो है प्रीति जाही की बात कहैं वारता सोहै है । अथवा बात कहै पौन पौन कहैं मिलाप आपने हाथ करि बिधाता ने बनायो है छ पछी औ नव कँवल दै सूर्य वीस चंद एक नाग चारि रंग धातु दै कुंदुरू एक कमल पर बसत हैं एक वान एक चाप अति चंचल । वामें चपल चित्त विकाय जात है औ कमल दंड द्वै औदै मत्तवारे द्वै कदली के पंम बिन पात एक सिंह औ एक हंस-गुप्त तेही गात में हैं भौंर बार नैन पंजन सुक नासिका पिक स्वर कंउ कपोत इस गति ए छ पछी । चरन उरोज कर मुफ नेत्र ए नौ कमल तरवन द्वै सूर्य बीस नष चंद चोटी सर्प सुवर्ण रंग अंग और रजत रंग हास ताम्ररंग कर लालिमा लोह रंग केस द्विकुंदुरु अधर दंत बत्तीस वज्र कन एक कमल में एक दृष्टि अथवा तिलक चाँप भौंह बाहु द्वै कमल दंड मतवारे द्वै जब एक सिंहकटि एक चाल सो तुम्हारे मिलन के वास्ते अत्यन्त आतुर है घबडाय है ॥३॥ राग धनाश्री। मनसिज माधवे मानिनिहिं मारिहै। चोटि पर लब अरततपर मौअर निर-
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