पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१२

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सुमिरन अलंकार कर के इहां अन विबाह ते नाइका अनूढा चंद देष उपमान उपमेय की सुधि आई ताते सुमिरन अलंकार ताको लच्छन । दोहा-उपमे सुध उपमान लष, सुमिरन भूषन होइ । __ अनविबाह अनुराग ते, कही अनूढा सोइ ॥ १ ॥९॥ उलटो रस सारंग हित सजनी कबह तीर नजैहै। बिन समुझो विपरीत माल- का अंगन आप लगैहै ॥ पगरिपु लगत सघन घन ऊपर बूझत कहा बतैहै। ग्रह बसु मिलत संभु की सैना चमकत चित न चितैहै ॥ मोहि आन वृषभान बबाकी मैया मंत्रन लेहै। सूर छेक ते गुप्त बातहतोको सर समुझेहै ॥१०॥ नाइका की उक्ति सपी से कै हे सपी रस उलटे ते सर (तलाब) होत है सोसारंग कमलहित सर को न जैहै बिना समुझे मालका ते विपरीत कालमा अपने अंग में न लगाइहो पगरिपु कंटक सो सघन घन पयोधरन में लगे जो बूझि है ताको का बताइहै ग्रहवसुअष्टम राहु में संभु सेना प्रेत मिलत है तिन को देष चित चमकत है सो न चितैहैं मोको वृषभान की सपत है माता को यह मंत्र नाही लहैं सूर कहत यामें छेकापन्हूत (ते गुपता नाइका की बात तो सों सब समुझाइ है इहां रत गोपत ताते गुप्ता अलंकार दुराइवे ते छेकापहुतन अलंकार) अलंकार ताको लच्छन। . दोहा-सुरत छयावै जो त्रिया, सो गुप्ता उर आन । म देत दुराइ अकार सो, छेकापडनित जान ॥ १ ॥१०॥ सुरभी रस रातो नँदनँदन सुरभी रस जिन रातो। ग्रहमुनि पिता पुत्रिका को