पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/११९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उपसंहार ( अक्षर ) क । इस टीका के सिवाय और भी कुछ भजनों का अर्थ सरदार कवि ने लिखा है वह मूल अर्थ समेत नीचे प्रकाश किया जाता है। राग रामकली। सारंग सारंगधरहि मिलावहु । सारंग बिनय करत साउँग सों सारंग दुष बिसरावहु॥ सारँग समैं दहत अति सारंग सारंग तिनहिं दिषावहु । साम्ग- पति सारँग घर जैहै सारंग जाडू मना- वह ॥ सारँग चरन सुभग कर सारंग साउँग नाम बोलावहु । सूरदास साईंग उपकाविनि सारंग मरत जिवावह ॥१॥ नाइका की उक्ति सपी सो। सारंग कहि * रामपूर ताको नाव बरही श्रेष्ठ हिये की ॥ सारंग कहैं गिरि ताके धरवैया कृष्ण ताको मिलाव । सारंग आकास ताको नाम अनंत सो अनंत विनय करत हाँ। सारंग विष्णु तिन की सौह तोकों सारंग सून तिन को नाम तपन जो काम की ताप है सो बिसराय दे। सारंग रात्री तायें दहै है। अति सारंग हृदय

  • मुझे मालूम होता है कि 'सारंग कहि रामपूर ताको नाव बरही। बनारस

की और लखनौ दोनों स्थान की छपी हुई पुस्तक में है परंतु यह अशुद्ध है यहां ऐसा चाहता सारंग काहेर मयूर ताको नाव बरही।