पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/११६

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[ ११५ ] लोक । बहो सूरज चंद दुग ते हीन भर वर सोक ॥ परी कूप पुकार काइ सुनी वह हम प्रकाश करते हैं । इस छप्पय से वेन ने पृथ्वीराज जी के पिता सोमे- श्वर जी को आसील दियी थी। छप्पय ॥ · अटल ठाट महि पाट । अटल तारागढ थानं ॥ अटल नया अजमेर । अटल हिंदव , अस्थानं ॥ - अटल तेज परताप । अटल लंका गढ डंडिव ॥ अटल आप चहुबान । अटल भूमी जस मंडिव ॥ संभरी भूप सोमेस नृप । अटल छत्र आपै सू सर । कवि राव वेन आसीस दें। अटल जुगां राजस कर ॥ इसी के साथ उसी पुस्तक में चंद के नागापनकरणा का कहा हुआ यह नीचे लिखा दोहा भी लिखा है:- दोहा । ले कुंजा नृप पीथुला , समित चमू समंद ॥ बेन नंदन कनवज गमन , चंद करन कइ दंद ॥' पृथ्वीराज रासे की प्रथम संरक्षा में लिखा है । ' इस के सिवाय फारसी और जम्मू की तवारीख भी इस बात की साक्षी देती हैं कि चंद हमारे हिन्दुओं के अंतिम बादशाह का परम प्रिय कविराज और सहचर था। याद हम उन पुस्तकों का मूल उद्धृत कर के यहां प्रमाण में प्रवेश करें तौ ग्रंथ के बहुत बढ़ जाने का भय है । अतएव हम मेजर रैवटी साहब की एक टिप्पणी को उद्धत कर प्रमाण में इस अभिप्राय से देते हैं कि हमारे पाठकों को इस विषय का अनुभव एक थोड़ी सी पंक्तियों से ही हो जाय । नीचे लिखी थोड़ी सी पंक्तियें केवल यही नहीं सिद्ध करती हैं कि चंद कबि पृथ्वीराजजी के समय में हुआ था परंतु रासे में लिखे कतिपय सौर वृत्तान्त भी कुछ फेर फार के साथ सिद्ध करती हैं। - ( मेजर रैवर्टी साहब कृत तबकात नासरी पृष्ट ४८६ ) "हिन्दू लोग एक भिन्न वृत्तान्त लिखते हैं कि उसी को अब्बुलफजल ने और जम्मू की तवारीख वाले ने भी थोड़े से फरक के साथ वर्णन किया है- 'यद्यपि फारसी इतिहास वेत्ता लिखते हैं कि राय पिथोरा तलावरी (तराई)