। १२ । बीरचंद प्रताप पूरनभयो अदभुत रूप ॥ रंतभार(३)हमीर भूपत संगषेलत आप(४)। तासु बंस अनूप भी हरचंद अति बिष्यात॥ आगरे रहि गोपचल में रहो ता सुत बीर। पुत्र जनमें सात ताके महा भट गंभीर॥ विद्याओं में अच्छा व्युत्पन्न पंडित था । उस के पिता का नाम वेण और विद्या-गुरु का नाम गुरूप्रसाद था । उस की दो स्त्रियों के नाम कमला अर्थात मेवा और गौरी अर्थात् राजोरा और एक लडकी का नाम राज बाई और दश लड़कों के नाम सूर १ सुन्दर २ सुजान ३ बल्ह ४ बल्ह ५ बलिभद्र ६ केहरि ७ बीर- चंद ८ अवधूत अर्थात् योगराज ९ और गुनराज १० थे। इस महाकाव्य के विषयों को वैसे तो उस ने समय २ पर बना कर कंठ कर रक्खे थे परंतु उन को ग्रंथाकार में उस ने ६०॥ दिन में रचा था और अंत को उस ने रासे की पुस्तक अपने लडके जल्ह नामक को दियी थी। इस रासे के अतिरिक्त उस के रचे और भी कईएक ग्रंथ सुनने में आते हैं परंतु उन में सब से बड़ा ग्रंथ यह रासा है और अन्य सब ग्रंथ अब बिलकुल नहीं मिलते हैं। उस का सविस्तर जीवनचरित्र और वंशावली जहां तक हमारे जानने में ख्यातादि से आई है वह हम इस ग्रंथ के समाप्त होने पर छाप कर प्रसिद्ध करेंगे।' फिर लिखा है। कवित्त-'सम बनिता बर बंदि । चंद जंपिय कोमल कल ॥ सबद ब्रह्म यह सत्ति । अपर पावन कहि निर्मल ।। जिहित सबद नहिं रूप । रेख. अकार बन्न नहिं ॥ अकल अगाध अपार । पार पावन त्रयपुर महिं ॥ तिहिं सबद ब्रह्म रचना करौं । गुरुप्रसाद सरसें प्रसन ॥ जद्यपि सु उकति चकौं जुगति । तौ कमक बदनि कवितह हसन ॥ छंद ॥ १३ ॥ रू० ॥ ८॥ . . ८ चंद इस रूपक में अपनी स्त्री को उस को शंका का उत्तर दे कर
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